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तणा जे गुण गावेने सांभले, भेद भेदांतर समजे ज्ञानी ते कहेवाय ॥ गुरु गुमान विजयनो शिष्य कहे शिर नामीने, सदा सोभाग्यविजय थावे गीत गाय सदाय ॥ माता०॥९॥ इति ॥
॥ अथ श्री ज्ञान पंचमीनुं स्तवन ।।
॥ ढाल पहेली ॥ देशी रसीयानी ॥ ॥ प्रणमी हो पास जिणेसर प्रेमस्युं, आणी आणंद अंग ॥ चतुरनर || पंचमी तपनो महिमा अति घणो, केहेस्युं सुणज्योरे तेह ॥ चतुरनर ॥ भाव भलें पंचमी तप कीजीये ॥१।। एम उपदेशे हो श्री नेमीसरु, पंचमी करजोरे तेम ॥ चतु० ॥ गुणमंजरी वरदन तणी परें, आराधे फल जेम ॥ च०॥ भाव० ॥२॥ जंबुद्वीपे हो भरत मनोहरु, नयर पदम पुर खास ॥ च० ॥ राजा अजित सेन तिहां कणे, राणी यशोमती नाम ॥ च०॥ नाव ॥३॥ वरदत्त नामें कुंवर तेहनो, कोढे ब्यापीरे देह ॥ च०॥ ज्ञान विराधन कर्म जे बांधीयु, उदये आव्युरे तेह ॥ च० ॥ भा० ॥ ४ ॥ तेणें नयरे सिंहदास गृहवसे, कपुर ति
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