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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५१ माय ॥ भव सत्तावीश वर्णवं सुणतां समकित थाय ||१|| समकित पामे जीवने, भव गणतीए गणाय ॥ जो वली संसारे भमे, तोपण मुगते जाय ॥ २ ॥ वीर जिनेश्वर साहेबो, जमीयो काल अनंत ॥ पण समकित पाम्या पछी, अंते थया अरिहंत ||३|| ॥ ढाल पहेली || कपूर होय अति उजलो रे ॥ ए देशी पहेले भवे एक गामनो रे, राय नामे नयसार || काष्ट लेवा अटवी गयो रे, भोजन वेळा थाय रे ॥ प्राणी धरिये समकित रंग, जिम पामिये सुख अभंग रे ॥ प्राणी ॥ धरिये ॥ १ ॥ ए आंकणी ॥ मन चिंते महिमा नीलो रे, आवे तपसी कोय ॥ दान देइ जोजन करूं रे, तो वंछित फळ होय रे || प्राणी० ॥२॥ मारग देखी मुनिवरे, वंदे देइ उपयोग || पुछे केम भटको इहां रे, मुनि कहे साथ विजोगरे || प्राणी || ३ || हरष भरे तेडी गयो रे, पकिलाभ्या मुनिराज ॥ भोजन करी कहे चालीए रे, साथ भेळा करूं आज रे ॥ प्राणी ॥४॥ पगवटीये भेळा करया रे, कहे मुनि द्रव्य ए मार्ग ॥ संसारे भूला भमो रे, जाव मारग अपवर्ग रे ॥ प्राणी० For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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