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वशे ॥ जि० ॥ एक० ॥ रंभादिक अपच्छरनी टोली, वंदी नमी गुण गावशे ॥ जि० ॥ एक० ॥ ११ ॥ अंतरयामी दूरे विचरो, मुझ चित्त भीनुं ज्ञानशुं ॥ जि. ॥ एक० ॥ हृदयथकी जो दूरे जाओ, तो अमे कौतुक मानशु॥ जि०॥ एक०॥१२॥ सुलसादिक नव जिनपद दीg, अमशुं अंतर एवडो । जि०॥ एक० ॥ वीतराग जो नाम धरावो, सहुने सरिखा तेवडो ॥ जि० ॥ एक०॥ १३ ॥ ज्ञाननजरथी वात विचारो. रागदशा अम रूअडी ॥ जि०॥ एक० ॥ सेवक रागें साहेब रीजो, धन धन त्रिशला मावडी ॥ जि०॥ एक० ॥ १४ ॥ तुज विण सुरपति सघला तूसे, पण अमें आमण दूमणां ॥ जि० ॥ एक० ॥ श्रीशुभवीर हजूर रहेतां, उन्लव रंग वधामणां ॥ जि० ॥ एक० ॥ ॥१५॥ इति श्री समवसरण स्तवन ।। संपूर्ण ॥
॥ अथ सिद्धपद स्तवन ।। ॥श्रीगौतम पृच्छा करे, विनय करी शीशनमाय प्रभुजी ॥ अविचल स्थानक में सुण्यं. कृपा करी मोय बताय प्रनुजी ॥ शिवपुर नगर सोहामणुं ॥१॥
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