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॥११॥ अजर अमर अलख अनंत, निराकार निरंजनं॥ ब्रह्म ज्ञान अनंत दर्शन, ॥ नमो० ॥ १२ ॥ अचल सुखकी लहेरमां, प्रभु लीन रहे निरंतरं॥ धर्म ध्यानथी सिद्ध दर्शन, ॥ नमो० ॥१३॥ ध्याने धूप मने पुष्पर्श, पंच इंद्र हुताशनं ॥ दमा जाप संतोष पूजा, पूजो देव निरंजनं ॥ १४ ॥ नमो सिद्ध निरंजनं ॥ इति ॥
आवती चोवीसीनु चैत्यवंदन, श्री पद्मनाभ पहेला जिणंद, श्रेणीक नृपजीव ॥ सुरदेव बीजा नमुं. सुपास श्रावक जीव ॥१॥ श्री सुपार्श्व त्रीजावशी, जीवकोणिक उदायी ॥स्वयं प्रभु चोथा जिणंद. पोटिल मनभावि ॥ २ ॥ सर्वानुभुति जिन पंचमाए, दृढायु श्रावक जाण ॥ देवसुत छटा जिणंद, श्रीकार्तिक शेठवखाण ॥३॥ श्रीउदय जिन सातमाए, शंखश्रावक जीव ॥ श्रीपेढाल जिन आठमा, अनंत मुनि जीव ॥४॥ पोटिल नवमा वंदिएए, जीव जि सुनंद ॥ सतकीरति दशमा जिणंद, सतक श्रावक आणंद ॥ ५॥ सुव्रत जिन अगीयारमाए, देवकी
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