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श्राविका, जे निरखे तुम मुख, चंद हो ॥ मु०॥ पण ते मनोरथ अम तणो, कांइ फलस्ये भाग्य अमंद हो ।मु०॥ श्री० ॥ ४॥ वरतारो वरती जुओ, काइ जोसी मांडी लगन हो ॥ मु० ॥ क्यारे सी. मंधर भेटस्युं, मुने लागी एह लगन हो ॥ मु०॥ श्री० ॥५॥ पण कोइ जोसी न एहवो, जे भांजे मननी भ्रांत हो ॥ मु० ॥ अनुभव मित्र कृपा करी, तेणे मेलव्यो तुम एकांत हो ॥ मु०॥श्री०॥६॥ वीतराग भावें सही, तुमे वरतो छो जगनाथ हो। मु० ॥ मे जाणुं तस केहेबाथी, हवे हुं थयो स्वामी सनाथ हो ॥ मु०॥ श्री० ॥ ७॥ पुष्करवइ विजये जयो, कांइ नयरी पुंडरीगिणी सार हो ॥ मु०॥ सत्य की नंदन वंदना, अवधारज्यो गुणना धाम हो॥ मु०॥ श्री० ॥८॥ श्रेयांस नृप कुल चंदलो, राणी रुखमणि केरा कंत हो ॥ मु० ॥ वाचक रामविजय कहें, तुम्ह ध्याने होज्यो मुझ चित्त हो ॥ मु० ॥ श्री०॥ ९॥ इति
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