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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९७ ॥ १ ॥ बहु सुख खामी तुज वाणी परिणमे रे, जेह एक नय पक्ष ॥ भूला रे भूला रे, ते प्राणी भव रङवडे रे ॥ २ ॥ में मति मोहे एकज निश्चय आदयों रे, के एकज व्यवहार ॥ भेलारे भेलारे, तुज करुणाए ओलख्यारे ॥ ३॥ शिबिका वाहक पुरुष तणी परे ते को रे, निश्चय नय व्यवहार || मिलीयारे मिलीयारे, उपगारी नवी जुजुआरे ||४|| बहुला पण रत्न कह्या जे एकलां रे, ते माला न कहाय || मालारे मालारे, एक सुत्रे ते सांकल्यारे ||५|| तेम एकाकी नय सघला मिथ्यामति रे, मिलीया समकित रूप ॥ कहीये रे कहीये रे, लहीये सम्मति सम्मतिरे ||६|| दोय पंख विण पंखी जेम नवि चली शके रे, जेम रथ विण दोय चक्र ॥ न चले रे न चले रे, तिम शासन नय बिहं विना रे ॥ ७ ॥ शुद्ध अशुद्धपणुं सरखं छे बेजने रे, निज निज विषे शुद्ध ||जाणो रे जाणो रे, पर विषे अविशुद्धतारे ॥८॥ निश्वयनय परिणाम पणाए छे वमो रे, तेहवो नहि व्यवहार ॥ भाखे रे भाखे रे, कोइक एम नवि घटे रे || ९ || जे कारण निश्चय नय कारण For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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