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॥ ढाल ४ थो ॥ झांझरीयानी देशी ॥ ॥ कोइ कहे जिन पुजतां जी, जे षटकाय आरंभ ॥ ते किम श्रावक आचरे जी, समकितमां थिर थंभ॥१॥सुखदायक तोरी, आणामुज सु प्रमाण ॥ ए आंकणीतहने कहीए यतना भगति, किरीयामां नहिं दोष ॥ पडिकमणे मुनि दान विहारे, नही तो होय तस पोष ॥ २ ॥सु०॥ साहमी वच्छल परिकय पोसह; भगवइ अंग प्रसिद्ध ॥ घर निर्वाह चरण लीए तेहना, ज्ञाता मांहि हरि कीध ॥३॥सु०॥ कोणिक राये उदायन कीधां, वंदन मह सुविवेक ॥ एहाया कयबलिकम्मा कहिया, तुगिया श्राद्ध अनेक ॥४॥ ॥सु०॥ समकित संवरनी ते किरीया, तिम जिनपूजा उदार ॥ हिंसा होय तो अरथ दंडमां, कहे नही तेंह विचार ॥ ५॥ सु० ॥ नाग भूत यक्षा दिक हेते, प्रजा हिंसा रे उत्त ॥ सुयगडांगमां ते नवि जिन हेत, वेलिए जे होय जुत ॥ ६ ॥ सु० ॥ जिहां हिंसा तिहां नहीं जिन आणा, तो किम साधु विहार ॥ कर्मबंध नही जयणा भावे, ए छे श्रुत व्यवहार ॥ ७॥सु०॥
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