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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८० . उपनो; पुछे सामानिक देव ॥ ला०॥ स्यु मुझ पुरवने पछे; हितकारी कहो ततखेव ॥ ला० ॥२॥ ॥ तु०॥ ते कहे एह विमानमां; जिणपडिमा डाढा जेह ॥ ला० ॥ तेहनी तुम्हे पूजा करो, पुरव पच्छाहित एह ला ॥ ३॥ तु०॥ पूरव पच्छा शब्दथी; नित्य करणी जाणीए सोइ ॥ ला०॥ समकितदृष्टि सदृहे, ते द्रव्य थकी किम होय ॥ ला० ॥ ४ ॥तु०॥ द्रव्य थकी जे पुजीया, प्रहरण कोशादि अनेक ॥ला०|| तेहथी बिहुं जुदा कह्या, ए तो साचो भाव विवेक ॥ ला०॥५॥ तु० ॥ चक्ररयण जिण नाणनी, पूजा जे भरते कीध ॥ ला०। जिम तिहा तिम अंतर इहां, समकित दृष्टि सुप्रसीद्ध ॥ ला० ॥६॥तु० ॥ पहेलो भव पुरव कहे, ज्ञाता दहर संबंध ॥ ला० ॥ पच्छाकमुअ विषय कह्या, वली मृगापुत्र प्रबंध ॥ला०॥७॥ ॥तु०॥ आगमे सिभद्वा कह्या, गई ठिइ कहाणी देव ॥ला०॥ तस पुरव पच्छा कहे, त्रिहुं काले हित जिन सेव ॥ ला०॥८॥तु०॥ जस पुरव पच्छा नहि, मध्ये पण तस संदेह ॥ ला० ॥ एम पहले अंगे का, छे ' t For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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