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जग एहवो मिले, जे लहे मननी वात ॥ वेधे नही मन जेह शुं, कीम मिले तेह सुधान ॥ प्रभुजी० ॥ ॥ ६ ॥ नवनवा रंगी जीवडा, अति विषम पंचम काल || आप आपणा मन रंगमां, सहुको थइ रह्या लाल || प्रभुजी० ॥ ७ ॥ कहुं कुण श्रगल वातडी, कुण सांभले वली ते ॥ टाले ते कुण प्रमु तुम विना, मनडातणा संदेह ॥ प्रभुजी० ॥ ८ ॥ संसार सघलो जोवतां, मुज मन न रुचे कांही ॥ जीम कमल वननो भमरलो, तेने अवर न गमे कांही ॥ प्र० ॥ एए ॥ धन्य महाविदेहना लोकने, जे रहे सदा प्रभु पास ॥ मुखचंद देखी तुम तणो, पुरजो मननी आश ॥ प्रभु० ॥ ॥ १० ॥ तुम वयणा अमृत सरीखा, श्रवणे सुणो नित्यमेव ॥ संदेह पुछी मन तणो, निर्णय करी नित्यमेव ॥ ११ ॥ शे गुनहे अमने अवगुणी, प्रभुजी वश्या अतिदुर || शी भक्ति एवी ते हुंति, जे कर्या आप हजुर ॥ १२ ॥ जो गुनहा लाख गमे करी, सेवक लहीता जेह ॥ तो पण पोताना त्रेवडी, साहेब दाखी छेह ॥ ॥ प्रभुजी० ॥ १३ ॥ वळी वळी शुं कहीए घएं, प्रभु
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