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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Ah Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०२ करे, डाकणी परे छल जोती फरे ॥३॥ भुख्यो ब्राह्मण बगायो ढोर. चांप्यो नाग नासंतो चोर ॥ रांड भांडने मातो सांढ, ए सातेथी उगरीये मांड ॥४॥ लाग्यु घर शेठ संजम तणुं, सोमसुंदरी चित हरख्युं घणुं ॥ नारी प्रभावे न बळी एक छमी, वळी एक दिन धाडज पडी ॥५॥ पाडोसण मन चिन्ते इसु, पापी शेठनुं न गयुं किसुं ॥ देती श्रापने निर्धन थया, ते दंपति सुरलोके गया ॥ ६ ॥ सोम सुंदरी घणी मच्छर भरी, अशुभ कर्म उपार्जन करी ॥ पामी मरण सा कोइक गुणी, श्रावक मुख नवकारज सुणी ॥ ७ ॥ जितशत्रु मथुरानो राय, चउसुत उपर बेटी थाय ॥ सर्व ऋद्धि नामज तसदई, पंच धावसुं मोटी थई ॥ ८॥ शत्रु सैन्य समूहे नड्यो, जितशत्रु रणयोगे पड्यो | बुंट पडी जब राजद्वार, कुंवरी पण नाठी तिणीवार ॥९॥ उजाति एक अटवी पडी, रवि उदये मार्ग शिर चडी ॥ वनफल वृत्ते वनचर थई, यौवन वेला निष्फल गइ ॥१०॥ एक विद्याधर देखी करी, परणी सा जिन मंदिर धरी ॥ तिणि वेला घर लागी गयुं, सर्व ऋिद्धि For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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