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सुव्रत कच्छप विख्यात ॥ ६॥ नमिजिनने नीलोकमल, पामीए पंकजमाहि; शंखलंछन प्रभु नेमजी, दीसे उंचे आंहि ॥ ७ ॥ पार्श्वनाथजीने चरण सर्प, नीलवरण शोभित; सिंहलंछन कंचन तणु, वर्द्धमान विख्यात॥८॥एणीपेरे लंछन चिंतवी ए,ओलखीए जिनराय ज्ञानविमल प्रभु सेवता,लक्ष्मीरतन सरिराय ॥९॥
॥ एकसो सित्तेर जिन चैत्यवंदन ॥ ॥ सोले जिनवर शामळा, राता त्रीश वखाणुं; लीला मरकत मणिसमा. आडत्रिश गुणखाणुं॥१॥ पीला कंचन वर्ण समा, छत्रीशे जिनचंद; शंख वरण सोहामएं, पचाशे सुखकंद ॥ २ ॥सीत्तेर सो जिन वंदीए ए, उत्कृष्टा समकाल; अजितनाथ वारे हुवा, वंदू थइ उजमाल ॥३॥ नाम जपतां जिनतj, दुरगति दुरे जाय; ध्यान ध्यातां परमात्मनु, परम महोदय थाय ॥ ४ ॥ जिनवर नामे जश भलो, सफल मनोरथ सार; शुद्ध प्रतिती जिनतणी, शिवसुख अनुभव धार ॥ ५॥
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