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साधु कहेवाये दंभी । कोइ कम्म प्रशंसा करीये, भव भव गृहमां अवतरीये ॥८॥ लोहानी नावा तोले, भवसायरमा जे बोले ॥ जिनहर्ष भलो अहि कालो, पण कुगुरुनी संगति टालो ॥ ९॥
॥ ढाल ॥ ४ ॥ करजोडी आगल रही ॥ ए देशी ॥
॥ गुण गीरुआ गुरु ओलखो, हीयडे सुमति विचारीरे ॥ गुरु परिक्षा दोहिली, भुल पडे नर नारीरे ॥ गु० ॥१॥ पांच इंद्रिय जे वशकरे, पांच महाबत पालेरे ॥ चार चार कषाय तजी जेणे, पांचे किरिया टालेरे ॥ गु० ॥२॥ पांच समिती समिता रहे, तीन गुप्ति जे धारेरे ॥ दोष बेतालीस टालीने, पाणी भात आहारेरे ॥गु०॥३॥ ममता छांडी देहना, निलोभी निर्मायीरे ॥ नवविध परिग्रह परिहरे, चित्तमें चिंते न कांइरे ॥ गु० ॥४॥ धर्मतणां उपकरण धरे, संयम पालवा काजेरे ॥ भूमि जोई पगलां भरे, लोक विरोधथी लाजेरे । गु०॥ ५॥ पडिलेहण नित्य त्रिविधे करे, प्रमाद निवारीरे॥काले शुद्ध क्रियाकरे, इच्छा जोग निवारीरे ॥ गु० ॥६॥ वस्त्रादिक शुद्ध एषणी, ले देखी
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