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रयणायर तरीए, लीधुं लंका राज्य सो॥२॥ कर्म नियत ते अनुसरे ए, जेहमां शक्ति न होय तो॥ देउल घाघ मुखे पंखीयांए, पीयु पेसंतांजायतो॥३॥विण उद्यम केम नीकले ए, तील मांहेथी तेल तो ॥ उद्यमथी जंची चढे ए, जुओ एकेंद्रिय वेल तो॥४॥ उद्यम करता एक समे ए, जे नवि सीझे काज तो ॥ तेह फरी उद्यमथी हुवेए, जो नवि आवे वाजतो ॥५॥ उधम करी ओर्या विना ए, नवि रंधाये अन्न तो॥ आवी न पडे कोलीयो ये, मुखमां पखे जतन्न तो ॥ ६ ॥ कर्म पुत्त उद्यम पिताए, उद्यमे कीधां कर्म तो ॥ उद्यमथी दुरे टले ए, जुओ कर्मनो मर्म तो ॥७॥ दृढप्रहारी हत्या करीये, कीधां पाप अनंत तो ॥ उद्यमथी खट मासमां ए, आप थयो अरिहंत तो ॥८॥टीपे टीपे सर भरे ए, कांकरे कांकरे पाल तो॥ गिरि जेवा गढ नीपजे ए, उद्यम शक्ति निहाळ तो ॥ ९॥ उधमथी जळ बिंदुओ ए, करे पाषणमा ठाम तो ॥ उद्यमी विद्या जणे ए, उद्यम जोडे दाम तो ॥ १० ॥
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