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१४८ जहाज समा गुरु ज्ञानीरे ॥ किरिया रहित जे सिद्ध जिणंद छे, भगवती अंगनी वाणीरे ॥गुण०॥५॥ मंडुक चरण जिम जलदागमे, किरियाये तेम भव व्याधीरे ।। तस छार करवारे ज्ञाननी ज्योति छे, उपदेशपदे एम साधीरे ॥गुण०॥६॥ एकनो जाणग सर्व जाणग कह्यो, एहवी छे मार। वडाइ रे ॥ अविसंवादपणे जे जाणवू, तेहीज समकित जाइरे ॥गुण०॥॥ ज्ञान विना कहो समकित कीम रहे, किरिया तोज्ञाननी दासीरे ॥ छठ तपे सुका सेवाल भोजी कह्यो, देखे न सुख अविनासीरे ॥गुण०॥ ८॥ थोमली किरियारे ज्ञानीनी नली, जीम सुरनारीना भावरे।बहुली किरिया रे ज्ञान विना कीसी, जीम अंधनारीना हावरे ॥गुण०॥९॥ सहसत्रेतालीस बसे नर बुझाया, नंदिषेण शुभभाखरे । ज्ञानीए दीटर तेडीज वस्त छे. खरसिंह सम अन्य दाखेरे ॥गुण॥१०॥ किरिया नयनेरे ज्ञान कहे तुमे, मुज थकी निन्न अभिन्नरे ॥ भिन्न थशो तो रे जडता पामशो, जिन्नत्व मुजमाही लीनरे ॥ गुण० ॥११॥ न्याये त्रीजोरे जेहने आलंबीये, जुओ जुगति विमासीरे ॥ एक
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