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११९ ॥ ढाल ॥ ४ ॥ भरत नृप भावशुं ॥ ए देशी ॥
॥ नरपति चौदसने दिनए, घाणी वाहन आदेश ॥ करे तेली प्रतेए, रजकपरे ते अशेष ॥ व्रत नियम पालिये ए॥१॥ आंकणी ॥ भूपति कोपे कलकल्योए, इण अवसर परचक्र ॥ आव्यं देश भांजवाए, महादुदोन्त ते चक्र ॥ २॥ व्रत नि० ॥ नृप पण सन्सुख नीकल्योए, युद्ध करणने काज ॥ विकल चित्तथी थयो ए, इम रही तेलिनी लाज ॥ व्रतः ॥ ॥३॥ हालिने आठम दिने ए, दीधुं मुहूर्त तत्काल ॥ तीणे पण इम कडं ए, खेडीश हल हुंकाल ॥व्रत०॥ ॥४॥ कोपे भराणो भूपतिए, इण अवसर तिहां मेह॥ वरसण लाग्यो घणुं ए, खेडी न थावे हेव ॥ व्रत०॥ ॥५॥ त्रणे अखंड व्रत पालतां ए, पुण्य अतोलथी तेह ॥ मरण पामी स्वर्गे गया ए, छठे देव लोके जेह ॥व्रत०॥ ६॥ चउद सागरने आउखे ए, उपना ते ततखेव ॥ हवे शेठ उपना ए, बारमे देवलोके देव ॥ ॥ व्रत ॥७॥ मैत्री थई ते च्यारने ए, श्रेष्ठी सुरने ताम ॥ कहे त्रण देवता ए, प्रति बोधजो अम स्वाम
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