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११४ कादव टले. एह छे संवर रूपरे ॥ अविरति कूपथी उद्धरे, तप अकलंक स्वरूपरे ॥४॥ पूर्व जन्म तप आचयों, विशल्या थइ नार रे ॥ जेहना नवणना नी. रथी, शमे सकल विकाररे ।। सु० ॥५॥ रावणे शक्ति शस्त्रे हण्यो, पड्यो लक्ष्मण सेजरे ॥ हाथ अडतां सचेतन थयो,. विशल्या तप तेजरे ॥ सु० ॥ ६ ॥ छहु आवश्यक कां, एहते पचखाण रे॥छए आवश्यक जेणे कह्यां, नमुं ते जग जाणरे ॥सु०॥७॥
॥ कलश ॥ तपगच्छनायक मुक्तिदायक श्रीविजयदेवरूरीश्वरो ॥ तस पद दीपक मोह झीपक श्रीविजयप्रभ सूरि गणधरो॥श्रीकीर्तिविजय उवझाय सेवक, विनयविजय वाचक कहे ॥ छ आवश्यक जे आराधे. तेह शिव संपद लहे ॥१॥ इति षमावश्यक स्तवनं ॥
___ अथ षट्पर्वी महात्म्य स्तवन. ॥ ढाल ॥ १ ॥ ली ॥ पुन्य प्रशसीये ॥ ए देशी ॥
श्री गुरुपद पंकज नमीरे, भाऱ्या पर्व विचार ॥ आगम चरित्रने प्रकरणे रे, भाख्यो जेम प्रकारो रे॥
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