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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०८ अरीष्टनेमी नागरे, एणीपरे श्री जिन उत्तम गुण गाया पद्मविजय कहे भवफल पायारे ॥३॥ || ढाल || ७ || गिरुआरे गुण तम तणा ॥ ए देशी ॥ कल्याणक दिन गाइए, भाव हर्ष धरी बहु मानोरे ॥ प्रभु गुण स्मरण नित्य करी, तप करीये थइ सावधानोरे ॥ क० ॥ १ ॥ ते कल्याणकनुं गणो, वली गयं दोय हजाररे ॥ वर्त्तमान चोवीशीए, कल्याणक दिन अति सारोरे ॥ क० ॥ २ ॥ इम अनन्त चोवीशी धारीए, तो अनन्त कल्याणक थायरे ॥ जणुं तप कीजीये, धरी भक्ति शक्ति निरमायरे ॥ क० ॥ ३ ॥ संवत चढार छत्रीशना, माहावदी बीजने शनिवाररे ॥ शोभन जोगे शोभन थयुं, प्रभु गायो हर्ष पाररे ॥ क० ॥ ४ ॥ पाटण चोमासुं रही, लही जिन उत्तम सुपसायरे ॥ पद्मविजय पुण्ये करी, इम थुणीया श्री जिनरायरे ॥० ॥ ५ ॥ अथ श्री छ आवश्यकलुं स्तवन. ॥ दुहा ॥ चोवीसे जिनवर नमुं चतुर चेतना काज || आवश्यक जिणे उपदिश्या, ते थुपश्युं For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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