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अरीष्टनेमी नागरे, एणीपरे श्री जिन उत्तम गुण गाया पद्मविजय कहे भवफल पायारे ॥३॥
|| ढाल || ७ || गिरुआरे गुण तम तणा ॥ ए देशी ॥
कल्याणक दिन गाइए, भाव हर्ष धरी बहु मानोरे ॥ प्रभु गुण स्मरण नित्य करी, तप करीये थइ सावधानोरे ॥ क० ॥ १ ॥ ते कल्याणकनुं गणो, वली गयं दोय हजाररे ॥ वर्त्तमान चोवीशीए, कल्याणक दिन अति सारोरे ॥ क० ॥ २ ॥ इम अनन्त चोवीशी धारीए, तो अनन्त कल्याणक थायरे ॥
जणुं तप कीजीये, धरी भक्ति शक्ति निरमायरे ॥ क० ॥ ३ ॥ संवत चढार छत्रीशना, माहावदी बीजने शनिवाररे ॥ शोभन जोगे शोभन थयुं, प्रभु गायो हर्ष पाररे ॥ क० ॥ ४ ॥ पाटण चोमासुं रही, लही जिन उत्तम सुपसायरे ॥ पद्मविजय पुण्ये करी, इम थुणीया श्री जिनरायरे ॥० ॥ ५ ॥
अथ श्री छ आवश्यकलुं स्तवन. ॥ दुहा ॥ चोवीसे जिनवर नमुं चतुर चेतना काज || आवश्यक जिणे उपदिश्या, ते थुपश्युं
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