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है,तोभी उनको ४ महीनोंका वर्षाकाल कहनेसे मिथ्या भाषण करने कादोषआताहै। यदि अभी वर्तमानमें अधिकमहीनेश्रावणादि होनेपर भी जैनशास्त्रानुसार ४ महीनोंका वर्षाकालमानोगे, तो,पौष-आषाढ अधिक होनेवाला ८८ ग्रहसहित जैनपंचांगभी अभी मानना पडेगा. मगर वो जैनपंचांगतो अभी विच्छेदहै, इसलिये लौकिकपंचांग मुजच व्यवहार करनेमेंआताहै। अब यहांपर विवेकवुद्धिसे न्वायपूर्वक विचारकरना चाहिये, कि-अभी पोप-आषाढमहीनेकी वृद्धिवाला८८ ग्रह सहित जैनपंचांग विच्छेदभी मानना. व लौकिक पंचांग मुजब व्यवहारभी करना. और लौकिक पंचांग मुजब अधिकमहीने दो थावण,या दो भाद्रपद,वा दो आसोजभी मानने. फिर ४महीनोंकावर्षाकालभी कहना, यह तो 'बालचेष्टा की तरह पूर्वापर विरोधी वि. संवादी कथनकरना विवेकी विद्वानोंको सर्वथाही योग्य नहीं है। अ. धिकश्रावणादिमहीने नहींमानने होवे तो अभी अधिकपोषादि वाला जैनपंचांग बतावो अथवा लौकिक पंचांग मुजव अधिक श्रावणादि मानो तो अधिकपोषादिका बहाना बतलाकर ४ महीनोंकावर्षाकाल कहनेका आग्रहछोडो। अधिकश्रावणादिभी मानोंगे और ४ महीनोंका वर्षाकालभी कहोंगे, यह कभी नहीं बन सकेगा. विच्छेद जैनपं. चांगकी बातका आश्रय लेना और प्रत्यक्ष विद्यमान बातका निषेध करना, यह न्याय विरुद्धहै। पहिले पौष आषाढ बढ़तेथे तवभी फा. ल्गुन और आषाढचौमासा पांच महीनोंसे होताथा और अभी श्रावणादिवढतेहैं तब कार्तिक चौमासाभी पांचमहीनोंका होताहै.अभी जैनपंचांग विच्छेद होनेसे लौकिक पंचांग मुजब अधिक श्रावणादि मान्यकरके उसमुजय व्यवहार करना युक्तियुक्त व पूर्वाचार्योंकी आज्ञानुसारहै, जिसपरभी अधिक श्रावणादि होवे,तब पांच महीनों के वर्षाकालमें ५० दिने दूसरे श्रावण में या प्रथम भाद्रपदमें पर्युषणापर्व आराधन करनेका उल्लंघन करना और पीछे १०० दिन रहने की जगह ७० दिन रहने का आग्रह करना सर्वथा अनुचित है देखो
यद्यपि जैन पंचांग ४ महीनोंका वर्षाकाल कहाहै, परंतु जैन पंचांगके अभावसे अभी लौकिक पंचांग मुजय श्रावणादि बढतेहैं, तब पांच महीनोंका वर्षाकालभी मानना पड़ता है, इसलिये इसका निषेधकरना सर्वथा अनुचित है.बस! पौष-आषाढमहिनेकी वृद्धिसहित ४ महीनोके वर्षाकाल वाला जैन पंचांग शुरू बतावो या लोकिक पंचांग मुजब श्रावणादि बढे तब पांच महीनोंका वर्षाकाल
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