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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [४४] जीवोंको मुक्तिमार्गका रस्ता बतलानेवाले ८४ लाख जीवायोनीके स. 4 जीवोंको अभयदान देनेसे महान्पुण्यके भागी होते हैं, और अपने कुलको, गच्छको, समुदायकोभी सद्गतिके भागीबनातेहे, व आपभी अपनी आत्माको निर्मल करके अल्पकालमें निर्वाण प्राप्तकरने वाले होतेहैं, श्रीगौतमस्वामी गणधरादि उपकारी महाराजौकी तरह. इ. सलिये संसारसे डरनेवाले आत्मार्थियों को झूठा आग्रह छोडकर वगर विलंबसे सत्यग्रहण करना चाहिये । इस बातकोभी विशेष विवेकी निष्पक्षपाति पाठक गण स्वयं विचार लेवेंगे। ४७- सुबोधिका-दीपिका-किरणावली वगैरहकी पर्युष णा संबंधी तथा छ कल्याणक संबंधी शास्त्रविरुद्ध प्ररू. पणाकी भूलोंकों सुधारनेकी खास आवश्यकताहै. १- जैनपंचांगके अभावसे अभी महीना बढे तो भी “जैन टि. प्पणकानुसारेण यतस्तत्र युगमध्ये पौषो युगांते चाषाढ एव वर्धते, नान्येमासास्तट्टिप्पणकं तु अधुना सम्यग् न ज्ञायते, ततःपंचाशतैव दिनैः पर्युषणा संगतेति वृद्धाः" इस वाक्यसे सुबोधिका-दीपिकाकिरणावली इन तीनों टीकाकारोंने अपने तपगच्छकेही पूर्वाचार्यों की आज्ञासे ५० दिने दूसरे श्रावणमें या प्रथम भाद्रपदमें पर्युषणापर्वकी आराधना करनेका लिखा है, फिर उसीकोही उत्थापन करनेके लिये शास्त्रविरुद्ध और अपने प्राचीन पूर्वाचार्योकेभी विरुद्ध होकर कुयुक्तियोंका संग्रहकिया है, यह सबसे बडी प्रथम भूलकी है, उसको वगर विलंबसे खास सुधारनेकी आवश्यकता है। .. २- निशीथचूर्णिमें अधिकमहीनेको कालचूलाकहकरकेभीउसके ३०दिन पर्युषणासंबंधी दिन संख्याकी व्यवस्थामें गिनतीमें लिये हैं, उसको कालचूलाकेनामसे निषेद्ध किये सोयहभी दूसरी भूलकीहै। ३-निशीथ चूर्णिके अधिक मासके अभाववाले ५०दिनों संबंधी अधूरे पाठ भोलेजीवोंकों बतलाकर अभी दोश्रावण होवे,तबभी जि. नाशाविरुद्ध होकर ८०दिने पर्युषणा होनेका भय न करके भाद्रपद में पर्युषणा करनेका ठहराया सो भी तीसरी भूलकी है। ४- अधिक महीनेके अभावमें सामान्यतासे पर्युषणाके पिछाडी कार्तिकतक ७० दिन रहनेका कहाहै,उसको समझोबिना आधिक महीना होवे तब विशेषतासे शास्त्रानुसारही १०० दिन होते हैं, उ. सकीजगहभी ७०दिन रहनेका आग्रह किया सोभी चौथी भूलकीहै। For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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