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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir Acharya Shri ki { ४५१ ] रने में आती है जिसका विस्तार पूर्वक इस ग्रन्थमें छयगया है इसलिये कालचूला वगैरह के बहाने करके कुयुक्तियों से उसीके दिनो की गिनती निषेध करने वाले श्रीजिनेश्वर भगवानकी आज्ञाके लीपी उत्सूत्रभाषक बनते हैं, सो तो इस ग्रन्यको पढ़ने वाले तत्वज्ञ स्वयं विचार सकते हैं इसलिये श्रीजिनेश्वरभगवानकी आज्ञाके आराधन करनेकी इच्छावाले जो आत्मायी सज्जन होगे सो तो अधिकमामके दिनोंकी गिनती निषेध करनेका संसारवद्धिका हेतुभूत उत्सूत्र भाषणका साहस कदापि नहीं करेंगे, और भव्यजीवोंको इस ग्रन्यको पढ़ करके भी अधिकमासके निषेध करने वालों का पक्ष ग्रहण करके अभिनिवेशिक मिथ्यात्वसे बालजीवोंको कुयुक्तियोंके भ्रममें गेरनेका कार्य करनामी उचित नही है और गच्छका पक्षपात छोड़कर न्याय दृष्टि से इस ग्रन्थका अवलोकन करके अधिकमासके दिनोकी गिनती पूर्वकही पर्युषणादि धर्म व्यवहारमें वर्ताव करना सोही सम्यक्त्वधारी आत्मार्थियों को परम उचित है इतने परमो जो कोई अपने अन्तर मिथ्यात्वं के जोरसे अज्ञ जीवोंको भ्रमानेके लिये अधिक मासकी गिनती निषेध संबंधी कुयुक्तियोंका संग्रह करके पूर्वापरका विचार किये बिनाही मिथ्यात्वका कार्य करेगा तो उसीका निवारण करनेके लिये और भव्य जीवों के उपकार के लिये इस ग्रन्थ कारकी लेखनी तैयारही समझना । ___ अब पर्युषणासंबंधी लेख की समाप्तिके अवसरमें पाठक गणको मेरा इतनाही कहना है कि श्रीतपगच्छके विद्वान् कहलाते जोजोमहाशय जी श्रीअनंततीर्थंकर गणधरादि म. हाराजांके विरुद्धार्थ में पंचांगीके अनेक प्रमाणोंका प्रत्यक्षपने For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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