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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir { ४४८ ] दूसरे पंचम वर्षे १३ । १३ मासे और तीसरे वर्षे १२ मासे वार्षिक कृत्य होनेका दिखाकर पांच वर्षोंके ६० माम श्रीकु. लमंडन सूरिजी लिखते है सारो श्रीअनंत तीर्थंकर गणधरादि महाराजोंकी आज्ञाकोप्रत्यक्षपने उत्थापनकरके उत्सूत्रभाषण करनेवाले बनते हैं क्योंकि अभिवद्धि तमें वीशदिने श्रावणमें पर्यषणा करनेसे जैनशास्त्रानुसारतो प्रथम चौथे वर्षे १३ । १३ मासे और दूसरे तीसरे पंचमें वर्षे १२॥१२ मासे वार्षिक कृत्य होनेका बनताहै और पांच वर्षों के ६२ मास श्रीअनंत तीर्थकर गणधरादि महाराजोंकी आज्ञानुसार जैनशास्त्रों में प्रसिद्ध है। और मासहिसे तेरहमासहोतेभी १२ मासके क्षामणे लिखतेहै सभी अज्ञानताका सूचकहै क्योंकि मासवृद्धि होने से तेरहमास छवीशपक्षकक्षामणे कियेजातेहै इसका निर्णय सातवे म० ले० समीक्षामें इसही ग्रन्थ के पृष्ठ ३६३ से ३७८ तक छपगयाहे सो पढनेसे सब निर्णय होजावेगा। और जैनशाखोंमें मुख्य करके एकबातकी व्याख्या करते है उसीकेही अनुसार यथोचित दूसरी बातोंके लियेभी समझा जाताहै इसलिये जिन जिन शाखामें चंद्रसंवत्सर में ५० दिने तथा अभिवर्द्धित संवत्सरमें २० दिने ज्ञात पर्य षणा कही सो यावत् कार्तिक तक खुलासा लिखाहै जिसपर विवेक बुद्धिसे विचार किया जावेतो जैसे चंद्रसंवत्सर, ५० दिन जहां पूरे होवे वहां स्वभावसेही भाद्रपद समजते हैं तैसेही अभिवर्द्धित संवत्सरमें २० दिन जहां पूरे होवे वहां भी स्वभाविक रीतिसे श्रावण समजना चाहिये । और चार मासके १२० दिनका बर्षा काल में ५० दिने पर्यषणा करनेसे For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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