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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir {१३९ ] इत्यादि गाथा लिखके उत्सूत्र भाषणले मिथ्यात्वका कारण कियाहै जिम का निणयता चौथे और सातवें महाराजजी के लेखकी ममीक्षामें इमही ग्रन्थ के पृष्ठ २०५ से २१० तक और ३८५ से ३९५ तक सविस्तार छपगयाहै सो पढ़नेसै हर्षभषणजो की शास्त्रार्थ शन्य विद्वत्ताका दर्शन अच्छी तरह से हेजावेगा। और श्रीनिशीथ तथा श्रीदशवैकालिकवृत्ति के नामसे जलासंबंधीकल्पित अधरा पाठ लिख के उसी पर अपनी मतिसे कुविकल्प उठाकर कालचलाके बहाने अधिक मासकी गिनती उत्नत्र भाषणरूप निषेध करके वाल जीवोंके आगे धर्म ठगाई फैलाई है जिसका निर्णयतो 'जैन सिद्धांत समाचारी के लेखकी समीक्षामें इसही ग्रन्थ के पृष्ठ ५८ से ६५ तक और पांचवें महाशयजी के लेखकी समीक्षामें पृष्ठ २० से २२३ तक छपगयाहै सो पढने मालम होजावेगा। और रत्न कोष ज्योलिष ग्रन्थका १ श्लोक लिखके अधिक मासमें मुहूर्त नैमित्तिक बिवाहादि संसारिक कार्य नहीं होनेका दिखाकर विनामुहतका पर्युषणादि धर्म कार्यमी अधिकमासमें नहाने का दिखाया सभी उत्सत्र भाषणहै इस बातका निर्णय चौथे महाशयके लेख की समीक्षामें पृष्ठ १९४ से २०४ तक छप गयाहै। ___ और भी इसीही तरहसे अधिक मासके ३० दिनों को गिनतीमें निषेध करके ८० दिनके ५० दिन बालजीवोंके आगे सिद्ध करने के लिये कुयक्तियों के विकल्पोका और उत्मत्र भाषणोंका संग्रह करके भी फिर जोजो मायवृद्धि के अभाव सम्बन्धी श्रीपर्युषणा कल्पचर्णि, निशीथचर्णि,पर्यषणा कल्पटिप्पण और संदेहविषौषधित्तिके सविस्तार वाले सब पाठों को छोष्ठकरके उसी के पूर्वापरका संबंध विनाके और For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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