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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ४२७] अभिमानी मिथ्यात्वी होवेंगे तो विशेष कदाग्रह बढ़ाने के लिये उद्यम करेंगे ( उसीका उत्तर तो देनाही होगा ) परन्तु इस ग्रन्थके प्रगट होनेसे सम्यक्त्वो अथवा मिथ्यात्वी की तो परिक्षा अच्छी तरहसे हो जावेगी : और सातवें महाशयजी अधिक मासके ३० दिनोंको गिनती में छोड़ करके दो श्रावण होते भी भाद्रपद में पर्युषणा करमा सो शुद्ध व्यवहारसे भगवानकी आज्ञामे ठहराते हैं सो तो सोनेकी भ्रांतिसे केवल पीतल ग्रहण करने जैसा करके अपनी पूर्ण अज्ञता प्रगट करते हैं क्योंकि अधिक मासकी गिनती छोड़नेसे तो अनन्त संसारकी वृद्धिका हेतुभूत मिथ्यात्वकी प्राप्ति होती है इसलिये अधिक मासकी गिनती निषेध करने वाले कदापि आज्ञाके आराधक नहीं बन सकते हैं किन्तु शास्त्रानुसार युक्तिपूर्वक और प्रत्यक्ष वर्ताव से अधिकमास के ३० दिनोंको गिनती मे लेने से हो भगवानकी आज्ञाका आराधन हो सकता इसलिये अधिकमासकी गिनती प्रमाण करना सोही तत्वान्वेषी शुद्ध व्यवहारको ग्रहण करनेवाले भगवानको आज्ञाके आराधक हो सकेंगे इसलिये मासबृद्धि दो श्रावण होनेसे ५० दिनकी गिनतीसे दूसरे श्रावण में पर्युषण पर्व में सांवत्सरिक वगैरह कृत्योंका आराधन करनेवाले आत्मार्थी होनेसे पञ्चम केवलज्ञानके भागी हो सकेंगे । और अन्त में पाठकवर्गको धर्मलाभ लेखकने लिखा है सो भी बुद्धिकी अजीर्णता प्रगट करी मालूम होती है क्योंकि पाठकवर्ग में तो पर्युषणा विचार के लेखको बांधनेवाले आचार्य, उपाध्याय, गणी, पन्यास तथा साधु साध्वी और लेखकसे दीक्षा For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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