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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ४१६ ] मिनाथजीके च्यवन कल्याणकके और श्रीमहावीरस्वामीके मोक्षकल्याणकके उच्छव तपश्चर्यादिकार्य, तथा दीपमालिका (दीवाली) और उसीके सम्बन्धी कार्य प्रथम कार्तिक मासके प्रथम कृष्ण पक्ष में करने में आवेंगे, दो चैत्र होनेसे श्रीपार्श्वनाथजीके केवल ज्ञानादि कार्य प्रथम चैत्रमें तथा श्रीवर्द्धमानस्वामी के जन्मादिके तथा ओलियों वगैरह दूसरे चैत्र में और दो आषाढ होनेसे श्रीआदिनाथ जीके च्यवनादिके कार्य प्रथम आषाढमें और श्रीवर्द्धमानस्वामीके च्यवनादिके कार्य तथा चौमासी वगैरह दूसरे आषाढमें इसी तरहसे सब अधिक मासोंमें समझना चाहिये । और इस बातका विशेष खुलासा पांचवें महाशयजी न्यायरत्नजीके लेखकी समीक्षामें भी लिखने में आया है मो इसीही ग्रन्थके पृष्ठ २३४:२३५॥२३६ में छप गया है सो पढ़नेसे विशेष निर्णय हो जावेगा ;-और मामवृद्धि होनेसे ऊपर मुजबही कल्याणकादि तपश्चर्या करने के लिये खास सातवें महाशयजीकेही पूर्वज श्रीतपगच्छमें सुप्रसिद्ध श्रीविजयसेनमूरिजीने भी कहा है तथाहि श्रीसेनप्रश्ने सप्तसप्तति (७७) पृष्ठे यथा: प्रश्न:-चैत्रमास वृद्धौ कल्याणकादि तपः प्रथमेद्वितीये वा मासिकार्या। ___उत्तरम्-प्रथमचैत्रासित द्वितीयचैत्रमित पक्षाभ्यां चैत्रमास सम्बन्धी कल्याणकादि तपः श्रीतातपादैरपि कार्यमाणं दृष्ठमस्ति तेन तथैवकार्यमित्यादि । और लौकिकजन भी दो भाद्रपद होनेसे श्रीकृष्णजीकी जन्माष्टमी प्रथम भाद्रपदके प्रथमपक्षमें मानते हैं तथा दो For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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