SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 545
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ४१३ ] पंक्तिमें गिनने योग्य है सो तो इस ग्रन्थ को संपूर्ण पढ़नेवाले विवेकी सज्जन स्वयं विचार सकते हैं : और दो श्रावण तथा दो भाद्रपद और दो आश्विन हो तोभी आषाढ चौमासीसे ५० दिने दूसरे श्रावणमें अ. थवा प्रथम भाद्र में पर्युषणा करनी चाहिये जिससे पिछाडी १०० दिने चौमासी प्रतिक्रमण करनेमें आवे तो कोई दूषण नहीं है किन्तु शास्त्रानुसार युक्ति पूर्वक है इसका विशेष विस्तार पहिलेही छप चुका है। और नवमे पृष्ठ के मध्य में तिथिसंबंधी लिखा है जिसकी तो ममीक्षा आगे लिखंगा परन्तु आठवें पृष्ठके अन्त में तथा नवमे पृष्ठके आदि अन्त में और दशवे पृष्ठकी आदिमें छट्ठी पंक्ति तक लिखा है कि(जैसे फाल्गुन और आषाढकी रद्धि होने पर दूसरे फाल्गुनमें और दूसरे आषाढमें चौमासी प्रतिक्रमणादि करते हो, उसी तरह अन्य अधिक मासमें भी दूसरेहीमें करना वाजिब है। वैसा नहीं करोगे तो विरोधके परिहार करने में भाग्यशाली नहीं बनोगे। एक अधिकमासमानने में अनेक उपद्रव खड़े होते हैं और अधिकमासको गिनती में न लेनेवालेको कोई दोष नहीं है । उसी तरह तुम भी अधिक मासको निःसत्त्व मानकर अनेक उपद्रव रहित बनो। इस रीतिको व्यवस्था रहते हुए कदाग्रह न छूटे तो भले स्वपरम्परा पालो परन्तु स्वमन्तव्यमें विरोध न आवे ऐसा वर्तावकरना बुद्धिमानपुरुषोंका काम है। जैसे फाल्गुनके अधिक होने पर दूसरे फाल्गुनमें नैमित्तिक कृत्य करते हो उसी तरह अन्य अधिकमाम आनेपर दूसरे मही नेमे नैमित्तिक कृत्योंके करनेका उपयोग रक्सो कि जिसमें कोई वि. For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy