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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ४०७ ] अथवा प्रथम भादमें पर्युषणा करना चाहिये परंतु मास वृद्धि दो श्रावण होतेभी ८० दिने भाद्र शुदी में पर्यषणा करके भी निर्दुषण बनने के लिये अधिक मासके ३० दिनोंको गिनतीमे छोड़करके ८० दिनके ५० दिन गच्छपक्षी बाल जीवोंके आगे कहके आप आज्ञाके आराधक बनना चाहते हैं सो कदापि नहीं हो सकते है क्योंकि श्रीभगवतीजी श्रीअनुयोगद्वार श्रीज्योतिषकरंडपयन और नव तत्व प्रकरणादि शास्त्रानुमार तथा इन्हींकी व्याख्यायोंके अनुसार समय, आवलिका, मुहूर्त, दिन, पक्ष, मासादिसे जो काल व्यतीत होवे उसी कालका समय मात्रभी गिनती में निषेध नहीं हो सकता है तथापि निषेध करनेवाले पंचांगीकी श्रद्धारहित और श्री जिनाज्ञाके उत्थापक निन्हव, मिथ्या दृष्टि-संसार गामी कहे जावे, तो फिर एक मासके ३० दिनोंको गिनती में निषेध करने बालेको पंचांगीकी श्रद्धा रहित और श्रीजिनाज्ञाके उत्थापक अभिनिषेशिक मिथ्यात्वी कहने में कुछ भी तो दूषण मालूम नही होता है इसलिये अधिक मास के ३० दिनोंकी गिनती निषेध करने वाले मिथ्या पक्षग्राहियोंकी आत्माका कैसे सुधारा होगा सो तो श्रीज्ञानीजी महाराज जाने । इसलिये दो आश्विन होनेसे भाद्र शुदी चौथसे कार्तिक तक १२० दिन होते है जिसके ७० दिन अपनी मति कल्पनासे बनाने वाले और दो श्रावण होनेसे भाद्रतक ८० दिन होते हैं जिसके तथा दो भाद्र होनेसे दूसरे भाद्र तक ८० दिन होते हैं जिसके भी ५० दिन अपनी मति कल्पनासे बनाने वाले अभिनिवेशिक मिथ्यात्वी होनेसे आत्मार्थियों को उन्होंका पक्ष छोड करके इस ग्रन्यको सम्पूर्ण पढ़ For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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