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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ you ] शासन में लौकिक पञ्चाङ्ग मुजबही तिथि, वार, घड़ी, प, नक्षत्र, योग, सूर्योदय, दिनमान, तिथिकी हनी, वृद्धि, राशि चन्द्र, पक्ष, मांस, मुहर्त्तं वगैरह से संसार व्यवहार में और धर्म व्यवहारमें वर्ताव करनेमें आता है इसलिये लौकिक पञ्चाङ्गमें जिस मासको वृद्धि होवे उसीको मान्य करके उसी मुजब संसार व्यवहारमें और धर्म व्यवहार में वर्ताव होनेका प्रत्यक्षमें बनता है इसलिये लौकिक पञ्चाङ्ग में दो श्रावण, दो भाद्रपद और दो आश्विन वगैरह होवे उसी के गिनतीको निषेध न करते हुवे प्रमाण करना सो तो पूर्वाचार्यकी आज्ञानुसार तथा युक्ति पूर्वक और प्रत्यक्ष अनुभव से स्वयं सिद्ध है इसलिये अधिक मासकी गिनती निषेध करने वाले अभिनिवेशिक मिथ्यात्वको सेवन करने वाले प्रत्यक्षमें बनते है सेा तो विवेकी सज्जन स्वयं विचार लेवेंगे ; और दो आश्विन होनेसे साम्वत्सरिक प्रतिक्रमणके बाद 90 दिने चौमासी प्रतिक्रमण करके दूसरे आश्विन में विहार करने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि अधिक मार्स होनेसे साम्वत्सरिक प्रतिक्रमणके बाद १०० दिने कार्त्तिकमें चौमासी प्रतिक्रमण करके विहार करने में आता है से शास्त्रानुमार और युक्ति पूर्वक न्यायकी बात है इसलिये कोई भी दूषण नहीं लब सकता है इसका खुलासा इसी हो ग्रन्थ के पृष्ठ ३५९ ३६० में छप गया है और “ समवायाङ्ग सूत्रके पाठकी क्या गति होगी” सातवें महाशयजीका यह लिखना अभिनिवेशिक मिथ्याast प्रगट करने वाला उत्सूत्र भाषण रूप संसार वृद्धिका For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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