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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ३९८ । कालमें नारकी जीवोंको तथा अढाई द्वीपके बाहेर रहने वाले जोवोंको क्षधा वेदना तथा पापबन्धन नहीं होनेका लिखते हैं मो अज्ञताके सिवाय और क्या होगा सो पाठकवर्ग स्वयं विवार लेवेंगे ;__ और ( देवपूजा प्रतिक्रमणादि दिनसे बढ़ है मास बद्ध नही है नित्य कर्म के प्रति अधिकमास हानि . कारक नही है) सातवें महाशयजोका यह भी लिन्दना मायावृत्तिसे बालजीवोंको भ्रमानेके लिये मिथ्या है क्योंकि देवपूजा प्रतिक्र नणादि जैसे दिनसे प्रतिबद्धवाले है तैसे ही पक्ष, मासादिसे भी प्रतिबदु वाले है इमलिये पक्ष, मामादिमें जितनी देव पूजा और जितने प्रतिक्रमणादि धर्मकार्य किये जावे उतनाही लाभ मिलेगा और पुण्य अथवा पापकार्य से आत्माको जैते दिवस लाभकारक अथवा हानिकारक होता है तैसेही पक्ष मासादिमें पुण्य अथवा पाप होनेसे पक्ष मासादि भी लाभकारक अथवा हानिकारक होता है इमलिये पक्ष मासादिकके पुण्य कार्योंकी अनुमोदना करके उस पक्ष मासादिको अपने लाभकारी माने जाते हैं तैसेही पक्ष नासादिमें पापकाय्यं हुवे होवे उत्तीका पश्चात्ताप करके उसीकी आलोचना लेने में आती है और उप्ती पक्ष मासादिको अपने हानिकारक समझे जाते हैं और एक पक्षके १५ राइ तथा १५ देवती और एक पाक्षिक प्रतिक्रमण करने में आता है तैसे ही एक मासमें ३० राइ तथा ३. देवसी और दो पाक्षिक प्रतिक्रमण करने में आते हैं मो तो प्रत्यक्ष अनुभव से प्रसिद्ध है इसलिये एक मासके ३० दिनोंमें सब संसार व्यवहार और पुण्य पापादि कार्य होते ना सावं For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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