SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 500
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ३६८ ] नहीं ठहरेगा जब अधिक मास में विहार करके दूसरे गांव जावेगा तब उसीको दश कल्पि विहार हो जावेगा क्योंकि चारमास शीतकालके चारमास उष्ण कालके तथा एक अधिक मासका और एक वर्षाऋतुके चारमासका इस तरह से अवश्य करके दसकल्पि विहार होता है तथापि नव कल्पि कहनेवाला तो प्रत्यक्ष माया सहित मिथ्याभाषण करनेवाला ठहरेगा सो पाठकवर्ग भी विचार सकते हैं और जैसे मास वृद्धि होनेसे दसकल्पि विहार करने में आता है तेसही मा. सवद्धि होनेसें तेरह मास छबीश पक्षोंकी गिनती करके उतनेही क्षामणे करने में आते हैं सो आत्मार्थी श्रीजिनेश्वर भगवान् की आज्ञाके आराधक सत्यग्राही भव्यजीव तो मंजूर करते हैं परन्तु उत्सूत्र भाषक कदाग्रही विद्वत्ता के अभिमानको धारण करनेवालोंकी तो बातही जदी है। और अधिक मासकी गिनती श्रीतीर्थंकर गणधरादि महा. राजोंकी कहीहुई है जिसको संसारगामी मिथ्यात्वी श्रीजि. मात्राका विराधकके सिवाय कौन निषेध करेगा और अधिक मासको माननेवालों को दूषण लगाकरके फिर आप निर्दूषण भी बनेगा। सो विवेकी पाठकवर्ग विचार लेवेंगे। और अधिक मासके कारणसे ही तेरह मास छबीश पक्षका अनिवर्द्धित संवत्सर श्रीअनन्त तीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंने कहा है इस लिये अवश्य करके पांच मासका एक अभिवति चौमासा भी मामना चाहिये। (शङ्का ) अधिक मासके कारणसे पांच मासका अभिबर्द्धित चौमासा किस शास्त्र में लिखा है। (समाधान) भो देवानुप्रिय ! ऊपर ही ३६३, ३६४ पष्ट में For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy