________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
[ ३२० ] २ दूसरा-श्रीगणणधर महाराज श्रीसुधर्म स्वामीजी कृत श्रीमहानिशीथ सत्रके तीसरे अध्ययनमें उपधानके अधिकारमें चैत्यवन्दनादि सम्बन्धी विस्तार पूर्वक खुलासे पाठ है जिसके सम्बन्धवाले आगे पीछेके सब पाठको छोड़ करके थोडासा अधूरा पाठ न्यायाम्भोनिधिजीने जैनसिद्धान्त समाचारी नामक पुस्तकके पष्ठ ३० वामें लिख करके गणधर महाराजके विरुद्धार्थमें सामायिकमें प्रथम इरियावही स्थापन करी सो भी उत्सत्र भाषण है इसका भी विस्तार पूर्वक निर्णय संपूर्ण पाठार्थ सहित 'आत्माभ्रमोच्छेदनभानुः' नामा ग्रन्थके पृष्ठ २७ के अन्त में पृष्ठ ३७ तक अच्छी तरहसे छपगया है। __ ३ तीसरा-श्रीहरिभद्रसूरिजी कृत श्रीदशवैकालिकजी सूत्रके चूलिकाकी ७वीं गाथाको वृहत्ति में साधुके उपदेशाधिकारमें गमनागमनादि कारणसें इरियावही करके स्वाध्यायादि करने सम्बन्धी विस्तार पूर्वक सुलासे पाठ है ( श्रीदशवैकालिकजी मूलसूत्र, अवचूरि, भाषार्थ, दीपिका,
और सहवृत्ति सहित छपी हुई प्रसिद्ध है जिसके पृष्ठ ६१९ । ६८०।६८१ में छपगया है ) जिसके सम्बन्धवाले सब पाठको छोड़ करके सिर्फ एकपद मात्रही न्यायाम्भोनिधिजीने जैन नामक, पुस्तकके, पृष्ठ ३१ की आदिमें लिखके वृत्तिकार महाराजके विरुद्धार्थ में सामयिकाधिकारे प्रथम इरियावही स्थापी सो भी उत्सत्र भाषण है इसका भी विस्तार पूर्वक निर्णय 'आत्मभ्रमोच्छदनभानुः' के पृष्ठ ३० से ४८ तक छपगया है।
४ चौथा-श्रीत्तपगच्छके श्रीधर्मघोषसूरिजी कृत श्री
For Private And Personal