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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ३१७ ] और इस वर्तमान कालमें सुप्रसिद्ध न्यायाम्भोनिधिजी श्रीआत्मारामजी अनेक शास्त्रों के अवलोकन करनेवाले गीतार्थ कहलाते थे इसलिये श्रीपूर्वधर महाराज कृत श्री आवश्यक चूर्णि वगैरह २१ शास्त्रोंके प्रमाण सामायिकाधिकारे प्रथम करेमिभंते पीछे इरियावही सम्बन्धी ऊपरमेंही पृष्ठ ३१०-३११ में छपे है उन्ही शास्त्रों के पाठोंको सामायिक सम्बन्धी न्यायाम्भोनिधिजीने वांचे है लोगोंको सुनाये है और उन्ही शास्त्रकार महाराजोंको श्रीजैमशास्त्रोंके अतीव गहनाशयको समझनेवाले, बुद्धिनिधान, प्रभाविक, श्रीजिनेश्वर भगवान्की आज्ञाके आराधक, सत्यवादी, पर उपगारी, मोक्षाभिलाषी आत्मार्थी, और भव्य जीवोंको मोक्षसाधनका श्रीजिनाज्ञाके आराधनरूप रस्ताको दिखाने वाले गीतार्थ उत्तमपुरुष मानते थे लोगोंको भी कहते थे और उन्ही महाराजोंके बनाये ऊपरोक्त पञ्चाङ्गीके शास्त्रोंको नही माननेवालोंको मिथ्यात्वी ठहरा करके उन्ही महाराजोंकी आशातमा करनेवाले पञ्चाङ्गीकी श्रद्धारहित जैनाभास संसारगामी कहते थे और शास्त्रोंके पाठोंको छुपा करके अथवा आगे पीछेके सम्बन्धको छोड़ करके शास्तकार महाराजके विरुद्धार्थमें अधरे अधरे पाठ लिखके उलटे तात्पर्य्य भोले जोवोंको दिखाने वालोंको संसारमें परिभ्रमण करनेवाले ठहराते थे सोही खास न्यायाम्भोनिधिजीके बनाये 'चतुर्थस्तुतिनिर्णयः' वगैरह ग्रन्थोंसे प्रत्यक्ष दिखता है तथापि बड़ेही अफसोसकी बात है कि दूरवि बहुलकर्मी मिथ्यात्वीकी तरह पञ्चाङ्गीके ऊपरोक्तादि अनेक शास्त्रोंके पाठोंपर श्रीआत्मारामजीकी अन्तरमें श्रद्धा नही For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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