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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ११० ] श्रावकके सामायिक करनेकी विधिमें सामायिकाधिकार प्रथम इरियावही पीछे करेमिभंतेका उच्चारण करना ऐसे कोई भी शास्त्रोंमें नहीं कहा है किन्तु प्रथम करेमिझतेका उच्चारण किये बाद पीछेसें इरियावही करना श्रीतीर्थङ्कर गणधर पूर्वधरादि महाराजोंकी परम्परानुसार है और पञ्चाङ्गीके अनेक शास्त्रों में भी कहा है सोही दिखाता हुं : श्रीजिनदास महतराचार्यजी पूर्वधर महाराजकृत श्री आवश्यकजी सूत्रकी चूर्णिमें १, श्रीमान् महान् विद्वान् सुप्रसिद्ध १४४४ ग्रन्यकार श्रीहरिभद्रसूरिजी कृत श्रीआव. श्यकजी सूत्रकी वहवृत्तिमें २, श्रीचन्द्रगच्छके श्रीतिलकाचार्यजी कृत श्रीआवश्यकजीसूत्रको लघुपत्तिमें ३, श्रीयशोदेव उपाध्यायजी कृत श्रीनवपदप्रकरणको विवरणरूप वृत्तिमें ४, श्रीपाश्र्वनाथस्वामिजी की परम्परामें श्रीउक्केशगच्छके श्रीदेवगुप्तसूरिजी कृत श्रीनवपदप्रकरणकी वृत्ति५, पुनः श्रीपूर्वाचार्यजी कृत श्रीमवपदप्रकरणकी वृत्तिमें ६, श्रीलक्षमीतिलकसूरिजीकृत श्रीश्रावकधर्म प्रकरणकी वृत्तिमें 9, श्रीखरतरगच्छनायक सुप्रसिद्ध श्रीनवाङ्गीवृत्तिकार श्री मदभयदेवसूरिजी कृत श्रीपञ्चाशकजी सूत्रकी वृत्तिमें ८, श्रीवड़गच्छके श्रीयशोदेवसूरिजी कृत श्रीपञ्चाशकजी सूत्रकी चूर्णिमें , श्रीचन्द्रगच्छके श्रीविजयसिंहाचार्यजीकृत श्री श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रकी चूर्णिमें १०, श्रीपूर्णपल्लीयगच्छके कलिकाल सर्वज्ञ विरुदधारक महान्विद्वान् सुप्रसिद्ध तीन करोड़ श्लोकोंकी रचनासे अनेक ग्रन्यकर्ता श्रीहेमचन्द्राचार्यजी कृत श्रीयोगशास्त्र की वृत्ति में १९, श्रीखरतरगच्छके श्रीवर्द्धमानसूरिजी कृत श्रीकथाकोश ग्रन्थमें १२, श्रीपूर्वाचार्यजी कृत For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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