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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org [ ८४ ] ऐसा कहते हैं सो मिथ्यावादी है इसका विशेष विस्तार शास्त्रोंके प्रमाण सहित इस ग्रन्यके अन्त में करने में आवेंगा, ३ तीसरा यह है कि-खास दम्भप्रियेजीके गुरुजी श्रीन्यायाम्भोनिधिजीने चतुर्थ स्तुतिनिर्णयः पुस्तकमें श्रीखरतरगच्छके श्रीअभयदेव सूरिजी श्रीजिनवल्लभ मूरिजी श्री जिनपतिसूरिजी वगैरह आचार्योंकी समाचारियों के पाठ लिखे हैं और श्रीखरतरगच्छके आचार्यका वचनको नही मानने वालों को पृष्ठ ८८ के मध्यमें मिथ्यात्वी ठहराये हैं (इसका खुलासा इन्ही ग्रन्थके पृष्ठ १५० । १६० में छपगया है) और दम्भप्रियेजी श्रीखरतरगच्छके आचार्यजीका लेख प्रमाण नही करके अपने गुरुजीके लेखसै ही आप मिथ्यात्वी बनते हैं सो भी वड़ीही आश्चर्य्यकी बात है ; ४ चौथा यह है कि-दम्भप्रियेजी श्रीखरतरगच्छके आचार्यजीका लेख प्रमाण नही करते हैं इसको देखके और भी कितनेही अज्ञानी तथा गच्छ कदाग्रही अपने अपने गच्छके आचार्योंका लेखको प्रमाण मान करके और सब गच्छवालोंके आचार्योका लेखको प्रमाण नही मानेगे जिस से श्रीजिनवाणीरूपी पञ्चाङ्गीके सैकड़ो शास्त्रोंका उत्थापन होगा और अपनी अपनी मतिकल्पना करके चाहे जैसा वर्ताव करना सरू करेंगे तो श्रीजिनेश्वर भगवान्की अति उत्तम, अविसंवादी, श्रीजनशासनकी अखण्डित मर्यादा भी नही रहेगी और कदाग्रही लोग अपने अपने पक्षका आग्रह में फसके मिथ्यात्व वढ़ाते हुवे संसार वृद्धि करेंगे जिसके दोषाधिकारी दम्भप्रियेजी वगैरह होवेंगे और आप दूसरे गच्छके आचार्यका लेख प्रमाण नही करोंगे तो दूसरे गच्छवाले For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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