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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ २७५ ] असत्यको छोड़कर सत्यको ग्रहण करनेकी इच्छाही नही रखते हैं तैसेही आप लोगोंके भी कृत्य है ( इस बातका इस ग्रन्यके अन्त में खुलासा करनेमें आवेगा ) इस लिये उपरकी बातमें भी ढूंढियांका सरणा आप लोगही लेते हो। ६ छठा-जैसे कितनेही ढूंढिये लोग शास्त्रानुसार युक्तिपूर्वक श्रीजिनमूर्तिको मानने पूजने वगैरहकी सत्य बातोंको जानते हुए भी अपने मत कदा ग्रहको मालमें फस करके इस लोककी मानता पूजनाके लिये अपने दृष्टिरागी भक्तजनोंके आगे मिथ्यात्वके उदयसें सत्य बातांका निषेध करके अपने अन्ध परम्पराकी उत्सूत्र भाषणरूप कल्पित बातोंका स्थापन करके संसार वृद्धिका कार्य करते हैं तैसेही कितनीही बातों में आपके गुरुजी न्यायाम्भोनिधिजी ( श्रीआत्मारामजो ) ने भी किया है और आप लोग भी करते हो (जिसका खुलासा आगे करने में आता है ) इस लिये भी ढूंढियांका सरणा आप लोगही लेते हो। सातमा-जैसे कितनेही ढूंढिये श्रीजैन तीर्थों को छोड़के अन्य मतियोंके मिथ्यात्वी तीर्थों में जाते हैं तैसेही खास श्रीवल्लभाविजयजीने भी कराया अर्थात् घासीराम और जुगलराम इन दोन ढूंढक साधुयोंने (श्रीजिनेश्वर भगवान् तुल्य श्रीजिनमूर्ति की तथा श्रीजैनशासनके प्रभाविक महान् उत्तम श्रीजैनाचार्योंकी ) द्वेष बुद्धिसें वृथा निन्दा करनेका और शास्त्रोंके विरुद्ध होकरके उत्सूत्र भाषणका तथा अपनी मति कल्पना मुजब मिथ्या बातोंमें वर्त्तनेका मिथ्यात्वरूप ढूंढक मतका पाखण्डको संसार वृद्धिका कारण For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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