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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ २५९ ] चौमासीसे दिनोंकी गिनती करके पचास दिनेही निय करके पर्युषणा करनेका कहा है तथापि भाप लोग दो मावण अथवा दो भाद्रपद होनेसे ८० दिने पर्युषणाकरते हो और ८० दिनके ५० दिन भोले जीवोंको दिखाते हो सो भी माया सहित उत्सूत्र भाषण हैं। ६ छठा-मासद्धिके अभावसे भाद्रपदमें पर्युषणा करनी कही है तथापि आप लोग मासवृद्धि दो श्रावण होते श्री भाद्रपदमें पर्युषणा ठहराते हो सो भी उत्सूत्र भाषण है । सातमा-श्रीनिशीथ भाष्यमें १ तथा चूर्णिमें २ श्रीवृहस्कल्पभाष्यमें ३ तथा पूर्णिमें ४ और दत्तिमें ५ श्रीसमबायाज जीमें ६ तथा तवृत्तिमें ७ इत्यादि अनेक शास्त्रों में मासद्धिके अभावसे चार मासके १२० दिनका वर्षाकालमें पचासदिने पर्युषणा करनेसें पर्युषणाके पिछाड़ी ७० दिन स्वभाविक रहते हैं जिसको भी आप लोग वर्तमानमें दो आवशादि होनेसे पांच मासके १५० दिनका वर्षाकालमें भी पर्युषणाके पिछाड़ी ७० दिन रहनेका ठहराते हो सो भी उत्सूत्र भाषण है। ८ आठमा-अधिक मास होनेसे प्राचीन कालमें भी पर्युषणाके पिछाड़ी १०० दिन रहते थे तथा वर्तमानमें भी श्रावणादि अधिक मास होनेसें पर्युषणाके पिछाड़ी १००दिन शास्त्रानुसार युक्तिपूर्वक रहते हैं जिसको निषेध करते हो और १०० दिन मानने वालोंको दूषण लगाते हो सो भी उत्सूत्र भाषण हैं। नवमा-अधिक मासके ३० दिनोंका शुभाशुभकृत्य तथा धर्मकर्म और सर्व व्यवहारको गिनतीमें लेकर मान्य करते हो For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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