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[ २५३ ] अयमत्राशयः-सम्यक्त्वज्ञामचरणयोः कारणं यतएवमागमः
ता दंसणिस्सनाणं, नाणेण विणा गहुंति चरणगुणा ॥ अगुणस्स नत्यि मुक्खो, नत्थि अमुक्खस्स निवाणं ॥१॥ इति तच्च गुरुबहुमानिन एव भवत्यतो दुःकरकारकोपि तस्मिवज्ञानविदध्यात् तदाज्ञाकारि च भूयाद्यत उक्तंउहहम दसमदुवालसहिं, मासद्ध मास खमणेहिं ॥ अकरंतो गुरुवयणं, अणंत संसारिओ अणिओ ॥१॥इत्यादि
इहां आशय एछे के सम्यक्त्व ए ज्ञान अने चारित्रनु कारणछे जे माटे आगममा आरीते कहेलुछे-सम्यक्त्व वंतनेज जान होयछे अने ज्ञान विना चारित्रना गुण होता नथी अगुणीने मोक्ष नथी अने मोक्ष बगरमाने निर्वाण नथी, हवे ते सम्यक्त्व तो गुरुनो बहुमान करनारनेज होयछे एथी करीने दुःकरकारी थईने पण तेनी अवज्ञा नहीं करतां तेना आज्ञाकारी थर्बु जे माटे कहेलुंछे के छठ, अठम, दशम, द्वादश तथा अर्द्धमासखमण अने मासखमण करतो थको पण जो गुरुनो वचन नही माने तो अनंत संसारी थायछे। ___और श्रीरत्नशेखरसूरिजी कृत , श्रीश्राद्धविधित्तिका गुजरातीभाषान्तर शाः-चीमनलाल शांकलचंद मारफतीयाने श्रीमुंबई में छपवा कर प्रसिद्ध किया है जिसके पृष्ठ २८८ का लेख मीचे मुजब जानो ;.. आशातमाना विषयमा उत्सूत्र [ सूत्रमा कहेला आशयथी विरुद्ध] भाषणकरवाथी अरिहंतनी के गुरुनी अव हेलना करवी ए मोटी आशातनाओ अनन्तसंसारनी हेतुछे जेमके उत्सूत्र प्ररूपणाथी सावधाचार्या, मरीची,जमाली,कुल
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