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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३२ [ २४९ ] से आत्मार्थी पुरुषोंकी) चली आती है उसी मुजब मोक्षाभिलाषी सज्जन वर्त्तते हैं जिन्हों को छठे महाशयजीनें अपनी क्षुद्रबुद्धिकी तुच्छ विद्वत्ताके अभिमान से उत्सूत्र भाषणका भय न करते एकदम आज्ञा भङ्गका दूषण लगाके छापामें छपानेकी आज्ञा करी और शास्त्रानुसार चलने वालों को मिथ्या दूषण लगानेके कारणसे झगड़ा फैलानेके कारण का जरा भी विचार नही किया और जब श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंने पचास दिने पर्युषणा करनेका कहा है उसीके अनुसारे आत्मार्थी सज्जन पुरुष दूसरे श्रावणमें पचास दिने पर्युषणा करते है जिन्होंको छठे महाशयजी आज्ञाभङ्गका दूषण लगाते है जिससे श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंके वचनका अनादर होकर उन महाराजोंकी महान् आशातना होती है तथा अनेक सूत्र, चूर्णि, वृत्ति, प्रकरणादि शास्त्रोंके पाठोंके मुजब नहीं वर्त्तने से उत्थापन होता है और उन महाराजोंकी आशातना तथा अनेक शास्त्रों के पाठोंका उत्थापन और उन महाराजोंकी आज्ञानुसार अनेक शास्त्रोंके प्रमाणयुक्त वर्त्तने वालों को स्वपक्षपात के पंडिताभिमान में मिथ्या दूषण लगाना सो निःकेवल उत्सूत्रभाषणरूप है और उत्सूत्र भाषणके लिये ; श्रीभगवतीजी सूत्रमें १ तथा तद्वृत्ति में २ श्रीउत्तराध्ययनजी सूत्रमें ३ तथा तीनकी छ (६) व्याख्यायोंमें श्रीदशवेकालिक सूत्रमें १० तथा तीनकी चार व्याख्यायों में १४ श्रीसूयगडाङ्गजी (सूत्रकृताङ्गजी) सूत्रकी नियुक्तिमें १५ तथा तद्वृत्ति में १६ श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रमें ११ तथा तद्वृत्ति १८ श्री आवश्यकजी सूत्रकी चूर्णि में १९ श्री आवश्यकजी सूत्रकी Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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