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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ २४० ] शास्त्रों में आषाढ़ चौमासीसे ५० दिने अवश्य ही पर्युषणा करना कहा है और दो भादवें होनेसें दूसरे भादवे में पर्युषणा करने ८० दिन होते हैं जिससे दूसरे भादवेमें ८० दिने पर्युषणा करना और ठहराना शास्त्रोंके और युक्ति के विरुद्ध है इसलिये प्रथम भादवेंमें ही ५० दिने पर्युषणा करना शास्त्रानुसार युक्तिपूर्वक न्याय सम्मत है इसका विशेष निर्णय तीनों महाशयोंके नामको समीक्षामें इन्ही पुस्तकके पृष्ठ १४० । १४१ । १४२ की आदि तक अच्छी तरह से छप गया है उसीको पढ़ने से सर्व निर्णय हो जावेगा । और फिर भी न्यायरत्नजीनें अपनी बनाई मानवधर्म संहिता पुस्तक के पृष्ठ ८०० की पंक्ति ४ से १० तक तिथियाँ की हानी तथा वृद्धिके सम्बन्ध में और पृष्ठ ८०१ की पंक्ति २२|| मैं पृष्ठ ८०२ पंक्ति १० तक पर्युषणा में तिथियांकी हानी तथा वृद्धिके सम्बन्धमें शास्त्रों के प्रमाण बिना अपनी मति कल्पनायें उत्सूत्र भाषणरूप लिखा है जिसकी समीक्षा आगे तिथि निर्णयका अधिकार सातवें महाशय श्रीधर्मविजयजी के नामकी समीक्षामें करने में आवेगा वहां अच्छी तरहसे न्याय रत्नजोकी कल्पनाका ( और न्यायाम्भोनिधिजीनें जैन सिद्धान्त समाचारीकी पुस्तकमें जो तिथियांकी हानी तथा वृद्धि सम्बन्धी उत्सूत्र भाषण किया है उसीका भी ) निर्णय साथ साथ में ही करनेमें आवेगा सो पढ़ने से तिथियांकी हानी तथा वृद्धि होने से धर्मकाय्यों में किसी ऐतिसे वर्तना चाहिये जिसका अच्छी तरहसे निर्णय हो जायेंगा ;इति पाँचवें महाशय न्यायरत्नजी श्रीशान्तिविजयजी के नामकी पर्युषणा सम्बन्धी संक्षिप्त समीक्षा समाप्ता ॥ For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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