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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ २३५ ] और अनन्त कालचक्र हुए अधिक मास भी होता रहता है तैसेही अनन्त चौवीशी होगई जिसमें श्रीतीर्थङ्कर महाराजोंके कल्याणक भी होते रहते हैं परन्तु किसीने भी कल्याणक बढ़ जानेके भयसे अधिक मासकी गिनती निषेध नही करी है तथापि इप्त पञ्चमें कालके विद्यासागर म्यायरत्न का विशेषण धरानेवाले श्रीशान्ति विजयजी इतने बड़े विद्वान् कहलाते भी जैन शास्त्रोंके गम्भीरार्थको समके बिना कल्याणक वढ़ जानेके भय से अधिक मासकी गिनती निषेध करते हैं यह भी एक अलौकिक आश्चर्यकी बात है क्योंकि जैन ज्योतिषशास्त्रानुसार मासवृद्धिके कारणसे जब दो पौष अथवा दो आषाढ़ होते थे तब उस समय कोई भव्य जीवोंको श्रीतीर्थङ्कर महाराजोंके कल्याणककी तपश्चर्यादि करनेका इरादा होता था तब पहिले श्रीज्ञानीजी महाराजकों पूछके पीछे करते थे जिसमें दो मासके कारणसें कोई भगवान्का प्रथम मासमें कल्याणक होया होवे उसी कल्याणकको प्रथम मासमें आराधन करते थे और कोई भगवान्का दूसरे मासमें कल्याणक होया होवे उसी कल्याणकको दूसरे मासमें आराधम करते थे जिससे जिन जिन भगवान् का जो जो कल्याणक मास वृद्धिके कारणसें प्रथम मासमें अथवा दूसरे मासमें होया होवे उसीको उसी मुजब श्रीज्ञानीजी महाराजको पूछके आराधन करते थे, पक्षवत्, अर्थात् अमुक भगवान् का अमुक कल्याणक अमुक मासके प्रथम पक्षमें होया होवे उसीको प्रथम पक्षमें आराधन करते थे और दूसरे पक्ष में होया होवे उसीको दूसरे पक्षमें आराधन करते थे उसी तरह For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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