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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २३१ ] [ लेखमें दो श्रावण होनेसें भाद्रपद तक ८० दिन होते हैं जिसके ५० दिन बनालिये और दो आश्विन होनेसें कार्त्तिक तक १०० दिन होते हैं जिसके 90 दिन अपनी कल्पनासें बना लिये परन्तु श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंके कथित सूत्र सिद्धान्तोंके पाठोंका उत्थापनरूप मिध्यात्वका कुछ भी भय नही किया क्योंकि श्रीतीर्थङ्कर गंणधरादि महाराजोंने अनेक सूत्र सिद्धान्तों में समयादि सूक्ष्मकालकी गिनती सें एकयुगके दोनुं ही अधिक मासको गिनती में लिये है इसका विस्तार उपरमें अनेक जगह छप गया हैं और षट्द्रव्यरूप वस्तुयोंमें एककाल द्रव्यरूप वस्तु भी शाश्वती है जिसके अमन्ते कालचक्र व्यतीत होगय है और आगे भी अनन्ते कालचक्र व्यतीत होवेंगे जिसमें चन्द्र, सूर्य्यके, शाश्वते विमान होनेसे चन्द्रके गतिका हिसाबसें अनन्ते अधिक मास भी श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंके सामने व्यतीत होगये और आगे भी होवेंगे इस लिये सम्यक्त्वधारी मोक्षाभिलावी आत्मार्थी प्राणी होगा सो तो कालद्रव्यकी गिनतीके दो अधिक मास तो क्या परन्तु एक समय मात्र भी गिनती में कदापि निषेध नही कर सकता है तथापि न्यायरत्नजी जैन श्वेताम्बर धर्मोपदेष्टा तथा विद्यासागरका विशेषण धारण करते भी श्रीसर्वज्ञ कथित सिद्धान्तों में कालद्रव्य रूप शाश्वती वस्तुका एक समयमात्र भी निषेध नही हो सके जिसके बदले एक दम दो मासकी गिनती निषेध करके श्रीजैन श्वेताम्बर में उत्सूत्र भाषणरूप मिथ्यास्वके उपदेष्टा होनेका कुछ भी भय नही करते है, हा अतीव खेदः, — इस लेखका तात्पर्य यह है कि जैन शास्त्रानुसार Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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