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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [१६] लिख चुक हैं. इसलिये मासवृद्धि होनेसे १२० दिनोंकी जगह १५० दिनभी चौमासमेहोतेहैं. उसमें किसी प्रकारका दोष कोईभी शास्त्रमें नहीं बतलाया. मगर पर्युषणातो वर्षाऋतुम दिन प्रतिबद्ध होनेसे ५०दिने अवश्यही करना सर्वशास्त्रों में कहाहै, उसपर कभी १ दिनभी बढ जावे तो उसका दोष कहाहै. और दूसरे भाद्रपदमें पर्युषणाकरें, तो ८० दिन होनेसे प्रत्यक्षपने सर्व शास्त्रविरुद्ध होता है. इसलिये दूसरे आषाढमें चौमासी पर्वकी तरह पर्युषणा पर्व ८० दिन होनेसे दूसरे भाद्रपदमें कभी नहीं होसकते हैं, किंतु आगमादि सर्व शास्त्रोंकी आज्ञा मुजब ५० दिने प्रथम भाद्रपदमें करना युक्तियुक्त न्यायसंपन्नही है, इसको तो विषेश पाठक गण स्वयं विचार सकते हैं. १३-जिसको मान्यकरतेहैं उसीकोही उत्थापनकरतेहैं। हमेशां भाद्रपदमेही पर्युषणा पर्व करनेका ठहराने के लिये निशीथचूर्णिके अधूरे पाठको आगेकरते हैं, मगर चूर्णिमें तो ५० दिने या ४९ दिने अवश्यही पर्युषणा करना लिखा है, परंतु ५० दिन उ. परांत करना कभी नहीं लिखा और अधिक महीनके ३०दिनोंकोभी खुलासा पूर्वक गिनतीमें लिये हैं । जिसपरभी दो भाद्रपद होवें,तष ५० दिने प्रथम भाद्रपदमें पर्युषणापर्वका आराधन करना छोडकर, ८० दिने दूसरे भाद्रपदमें करतेहैं । उसीसे जिस चूर्णिका पाठ मान्य करतेहैं,उसी चूर्णिकापाठ (दूसरे भाद्रपदमें ८०दिने पर्युषणा करनेसे) उत्थापनभी करते हैं.इसको विशेष तत्त्वज्ञ जन स्वयं विचार सकते हैं. १४-अब देखो एक-वितंडा वाद॥ ८० दिने पर्युषणापर्व करनासो शास्त्र विरुद्ध ठहराते हो, मगर दो आषाढ महीने होवे तब प्रथम आषाढमें चौमासी प्रतिक्रमण करोगे, तो तुमारेभी ८०दिने पर्युषणा पर्व होवेंगे, तब कैसे करोगे? समाधान भो देवानुप्रिय! पर्युषणाके ५०दिनोंकी गिनतीग्रीष्मऋतु. की समाप्ति होनेपर वर्षाऋतुकी शुरूआतसे गिनी जाती है. और प्र. थम आषाढ महीना ग्रीष्मऋतुमें होनेसे उसमें चौमासी कार्य नहीं हो सकते और ग्रीष्मऋतुकी समाप्ति हुए बिना घ वर्षाऋतुकी शुरूआत हुए बिना प्रथम आषाढसे पर्युषणासंबंधी ५० दिनोंकी गिन तीभी कभी नहीं हो सकती. इसलिये प्रथम आषाढमें चौमासी का. र्य करने का, व उससे पर्युषणाके ८० दिन गिननेका कहना अज्ञानताका कारण है, क्योकि वर्षाऋतुकी आदिमें दूसरे आषाढके अंतमे चौमासीकार्य होनेसे पर्युषणाके ५०दिन गिननेका निशीथचूर्णि, प. For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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