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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org [ २०६ ] श्रावण मास हुवे है तब भी दोनु श्रावण मास में वर्षा भ खूब ( गहरी ) हुई है तथा वनस्पति को भी नवीन पैदा होते वृद्धि होते और हानी होते पाठकवर्गने भी प्रत्यक्ष देखा है और देश परदेशके सब वगीचों में मी दोनं मासोंमें फलों करके तथा फूलों करके वृक्ष प्रफुल्लित पाठकवर्गके देखनेमें आये होंगें और हरेक शहरोंमें वनमालि लोग अधिक मासमें शाक, भाजी, फल, फूल, वेचते हुवे सब पाठकवर्गके देखने में आते हैं यह बात तो हरेक अधिक मासमें प्रत्यक्ष देखनेमें आती है परन्तु कोई भी अधिक मासमें कोई भी देशमें कोई भी शहरमें शाक, भाजी, फल, फूलादि नवीन पैदा नही होते हैं तथा शहरमें भी वनमालि लोग बेचनेको नही आये हैं वैसा तो कोई भी पाठकवर्गके सुननेमें भी कभी नही आया होगा । यह दुनिया भर की जगत् प्रसिद्ध बात है इस लिये अधिक मासको वनस्पति अवश्य ही अङ्गीकार करती है तथापि न्यायाम्भोनिधिजीने (अधिकमासको अचेतनरूप वनस्पति भी नही अङ्गीकार करती है ) यह प्रत्यक्ष मिथ्या भोले जीवोंको अपना पक्षमें लाने के लिये लिख दिया यह बड़ा ही अफसोस है । - Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir और फिर भी न्यायाम्भोनिधिजी ( अधिक मासको अचेतनरूप वनस्पति भी नही अङ्गीकार करती है तो औरोको अङ्गीकार न करना इसमें तो क्याही कहना ) इस लेखको लिखके मनुष्यादिकोंको अधिक मास अङ्गीकार नही करनेका ठहराते है इस पर तो मेरेकों इतनाही कहना है कि न्यायाम्भोनिधिजीके कहनेसें तो सब दुनिया के सब लोगोंकों अधिक मासमें खाना, पीना, सोना, बैठना, For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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