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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ १३ ] पुरुषोंका अच्छी तरहसे सन्देहका (पर्युषणा सम्बन्धी और कल्याणक सम्बन्धी भी) निवारण किया है जो स्थिरचितसे वाँचके सत्यग्राही होगा उसीका तो अवश्य करके मिथ्यात्व रुप सन्देह निकलके सम्यक्त्वरूप सत्यबातकी प्राप्ति हो जावेगा इसमें कोई शक नही-- ____ और श्रीखरतरगच्छ के तो क्या परन्तु श्रीतपगच्छ के ही पूर्वाचार्योंने मासवृद्धिके अभावसे भाद्रपदमें पर्युषणा करनी कही है और दो श्रावण होनेसे पचासदिने दूजा श्रावणमें भी पर्युषणा करनी कही है इसका विस्तार उपरमें अनेक जगह छपगया है। इसलिये श्रीखरतरगच्छके पूर्वाचार्यजी कृत ग्रन्थका मासद्धि सम्बन्धी पाठको छुपाकर मासवृद्धिके अभावका पाठ भासवृद्धि होते भी भोले जीवोंको दिखा कर सत्य बात परसें श्रद्धाभङ्ग करके अपनी कल्पित बातमें गेरनेका कार्य करना न्यायांभोनिधिजीकों उचित नही था ;____ और आगे फिर भी न्यायाम्भोनिधिजीने अपनी जैन सिद्धान्त समाचारीको पुस्तकके पृष्ठ ९२ की दूसरी पंक्ति में सोलवी पंक्ति तक जो लिखा है सो नीचे मुजब जानो, [पृष्ठ १५९ पंक्ति ६ में नारचंद्र ज्योतिष ग्रन्थका प्रमाण दिया है सो तो हीरीके स्थानमें वीरीका विवाह कर दिया है । क्योंकि इसी द्वितीय प्रकरणमें ऐसा श्लोक है। यथा--हरिशयनेऽधिकमासे, गुरुशुक्रास्तनलममन्वेष्य ॥ लग्नेशांशाधिपयो,र्नीचास्तगमे च न शुभं स्यात् ॥ १॥ भावार्थः अधिक मासादिक जितने स्थान बताये उसमें शुभ कार्य नही होते है। तो अब बारामासिक पर्युषणा For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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