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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ १८६ । वृत्तिकार महाराजके विरुद्धार्थ में अधिकमासकी गिनती निषेध करते पर भवका भय कुछ भी नही किया यह वडाही अफसोस है। __और आगे जैन सिद्धान्त समाचारी की पुस्तकके पृष्ठ ९९ की पंक्ति १० वी से पृष्ठ ९२ वें की प्रथम पंक्ति तक ऐसे लिखा है कि ( पर्युषणा पर्व केबल भाद्रव मासके साथ प्रतिवन्धवाला है क्योंकि जिस किमी शास्त्र में पर्युषणापर्व का निरूपण किया है तिसमें भाद्रवमासका विशेषणके साथ ही कथन किया है परन्तु अधिक मास होवे तो श्रावण माप्तमें पर्युषणा करना ऐषा तो तुमारे गच्छवाले की नही कह गये है देखो, सन्देहविषौषधी ग्रन्थ में भी भाद्रव मास ही के विशेषण करके कहा है परन्तु ऐसा नहीं कहा कि अधिक माग होवे तो श्रावणमासमें करना ऐसा पर्युषणा पर्वके साथ विशेषण नही दिया है ) उपरके लेखकी समीक्षा करके पाउकवर्गकों दिखाता हुं कि हे सज्जन पुरुषो न्यायाम्भोनिधिजीके उपर का लेखको में, देखता हुँ तो मेरेकों न्यायाम्भोनिधिजी में मिथ्या भाषणका त्यागरूप दूजा महात्रतही नही दिखता है क्योंकि उपरके लेखमें तीन जगह प्रत्यक्ष मिथ्या भोले जीवोंको भ्रमाने के लिये उत्सूत्र भाषणरूप लिखा है सोही दिखाता हुं कि प्रथमतो (पर्यु षणापर्व केवल भाद्रव मासके साथ प्रतिबन्धवाला है क्योंकि जिल किमी शास्त्र में पर्युषा पर्वका निरूपण किया है तिसमें आद्रवमासका विशेषणके साथही कथन किया है) यह अक्षर लिखके मासद्धि होते भी भाद्रपद मासप्रतिबन्ध पर्यषणा न्यायांसोनिधिजी ठहराते है मो मिथ्या है क्योंकि For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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