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[ १८० ] राने के लिये उपरका लेख लिखाथा परन्तु खास शुद्धसमाचारीकारने ही श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रका इस ही पाठको अपनी शुद्धसमाचारीको पुस्तकमें लिखा है। और इन्ही श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रकी वृत्तिकारक ( शुद्धसमाचारी कारके परम पूज्य श्रीखरतरगच्छ नायक ) श्रीनवांगी वृत्तिकार श्रीअभयदेव सूरीजी प्रसिद्ध है जिन्होंने इन्ही पाठकी वृत्ति में चारमासके एकसो वीश ( १२० ) दिनका वर्षाकाल सम्बन्धी अच्छी तरहका खुलासाके साथ व्याख्या किवी है। सो प्रसिद्ध है और मैंने भी मूलपाठ तथा वृत्ति और भावार्थ सहित इन्ही पुस्तकके पृष्ठ १२० । १२१ में छपा दिया है इस लिये घारमास सम्बन्धी पाठको पांच मासके अधिकार में लिखना भी न्यायाम्भोनिधिजी को अन्याय कारक है और दो श्रावण होनेसें पांचमासके वर्षाकालके १५० दिन होते हैं यह तो जगत प्रसिद्ध है जिसकों अल्पबुद्धि वाले भी समझ सकते है जिसमें जैन शास्त्रों की आज्ञानुसार वर्तमान काले पचाप्त दिने पर्युषणा करनेसें पर्युषणाके पिछाढ़ी १०० दिन तो स्वाभाविक रहते ही है यह बात भी शास्त्रानुसार तथा प्रसिद्ध है तथापि न्यायाम्भोनिधिजी होकरके अन्याय के रस्तेमें वर्तके पांचमासके वर्षाकालमें पर्युषणाके पिछाड़ी १०० दिन स्वभाविक रहते हैं जिसको शास्त्र विरुद्ध कहकर चारमास सम्बन्धी पाठ लिखके दूषित ठहराते है। यह तो प्रत्यक्ष उत्सत्र भाषणरूप वृथा है और वर्तमानमें दो श्रावणादि होनेसे पचास दिने पर्युषणा और पर्युषणाके पिछाड़ी १०० दिन रहनेका श्रीतपगच्छके ही पूर्वाचार्योंने कहा है जिसका खुलासा इन्ही पुस्तकके पृष्ठ १४६ में छप गया है
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