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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ १७६ ] पीछाही १०० दिन शास्त्रानुसार रहते हैं इस लिये मासवृद्धि होते भी पर्युषणाके पीछाड़ी 90 दिन रहने का और १०० होनेसे दूषण लगाने का न्यायाम्भोनिधिजीका लिखना सर्वथा वृथा है इसका विशेष निर्णय तीनों महाशयों की समीक्षा सूत्रकार वृत्तिकार महाराजके अभिप्राय सहित संपूर्ण पाठसमेत युक्तिपूर्वक विस्तारसे पृष्ठ ११८सें पृष्ठ १२ तक छपगया है और आगे भी कितनीही जगह छप चुका है सो पढ़नेसे अच्छी तरह से निर्णय होजावेगा तथापि उपरोक्त लेखमें न्यायाम्भोनिधिजीनें उटपटाङ्ग लिखा है जिसकी समीक्षा करके दिखाता हुं-[ श्रावणमास बढ़ने से दूसरे श्रावणमें और भाद्रव बढ़नेसें प्रथम भाद्रव मासमें पर्युषणा करना यह तुमने अशीदिनका प्राप्तिके अयसें अङ्गीकार किया] इस लेखको लिखके आगे श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रका (सवीसइ राइमासै वइक्कन्ते) इस पाठसें पचासदिने पर्युषणा दिखाई ॥ इन अक्षरोंसें तो जैसे शुद्ध समाचारी कारने ५० दिने पर्युषणा ठहराई थी तैसेही न्यायाम्भोनिधिजीने भी ठहराई इसमें तो शुद्ध ससाचारी कारका लेखको विशेष पुष्टिमिली और न्यायांसोनिधिजीको अपमा स्वयं लेख भी बाधक होगया तो फिर दो श्रावण होनेसें भी भाद्रपदमें और दो भाद्रपद होनेसे दूसरे भाद्रपदमें न्यायांभोनिधिजी पर्युषणा करते हैं तब तो प्रत्यक्ष ८० दिन होते है और श्रीसमवायाङ्गजी आदि अनेक शास्त्रों में ५० दिने पर्युषणा करनी कही है और अधिकमास भी अनेक शास्त्रों में प्रमाण किया है तैसे ही खास न्यायांसोनिधिजी भी क्षामणा के सम्बन्धमें अधिकमास होनेसें [ तिसवर्षमें तेरांमास तो For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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