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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ १७३ ] ४५ दिन भी आजायगें तब क्या आपको जिनाशा भङ्गका दूषण नही होगा ) इस उपरके लेखसैं तो न्यायांभो निधिजीनें श्रीतीर्थङ्कर गणधर पूर्वधरादि पूर्वाचाय्यकी और अपनेही गच्छके पूर्वाचाय्योंकी आशातना करके और सबी उत्तम पुरुषों को दूषित ठहरानेका कार्य्य करके नय गर्भित व्यवहारको और श्रीकल्पसूत्रके मूल पाठको उत्थापन करके बड़ाही अमर्थ कर दिया है क्योंकि जैसे सूत्र, चूर्णि, भाष्य, वृत्ति, प्रकरण, चरित्रादि अनेक शास्त्रों में एक नही किन्तु सैकड़ों बाते व्यवहार नयकी अपेक्षासें श्रीतीर्थङ्करादि महाराज कहते हैं तैसेही शुद्ध समाचारी कारने भी व्यवहार नयसें पचास दिने पर्युषणा कहीं है और श्रीकल्प सूत्रज जीके मूल पाठका ( अन्तरा वियसे कप्पई) इस वाक्यसे पचास दिनके अन्दर में पर्युषणा होवे तो कोई दूषण भी नही कहा है तथापि न्यायांभोनिधिजी न्यायके समुद्र होते भी व्यवहार नयगर्भित श्रीजिनेश्वर भगवान् की व्याख्याका और श्रीकल्पसूत्र के मूल पाठका उत्थापनके भयका जरा भी विचार न करते विद्वत्ताके अभिमानसें और पक्षपातके जोर ४८ । ४० दिन होने का दिखाकर मिथ्या दूषण लगाते हैं सो कदापि नही बनता है, –याने सर्वथा उत्सूत्र भाषणरूप है और भी दूसरा सुनिये जो तिथियोंके हानी वृद्धिकी मिनती से कोई वर्ष में भाद्रपद शुक्ल चौथ तक ४८ दिन होनेका लिखकर न्यायाम्भोनिधिजी शुद्धसमाचारी कारको दूषित ठहराते हैं इससें मालुम होता है कि तिथियोंके हानी वृद्धिकी गिनती भाद्रपद शुक्ल छठ (६) के दिन पूरे पचास दिन मान्य करके न्यायाम्भोनिधिजी पर्युषणा करते होवेंगे For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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