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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ १७० ] और आगे लिखा है कि ( यद्यपि जैन टिप्पणाके अनु सार श्रावण और भादव मासकी वृद्धिका अभाव है तो भी पौष और आषाढमास की तो वृद्धि होती थी अब हम आपको पूछते है कि जैन टिप्पणाके अनुसार जब पौष अथवा आषाढ़मासकी वृद्धि हुई तब संवच्छरीको अम्भुठिओ सूत्रके पाठमें तेराणं मासाणं छवी पखाणं वैसा पाठ कहोगें क्योंकि तिस वर्ष में तेरह मास तो अवश्य हो जायगें और जैन सिद्धान्तोंमें तो किसी भी स्थानमें वैसा नही लिखा है कि अधिक मास होवे तब तेरह मास और छवीश पक्ष संवच्छरीको कहना तो अब आपका प्रयास क्या काम आया ) इस लेखको देखता हु तो न्यायाम्भोनिधिजीके बुद्धिकी चातुराईका वर्णन में नही कर सकता हुँ क्योंकि जब शुद्ध समाचारी कारने जैन सिद्धान्तोंकी अपेक्षायें पौष और आषाढ़मासकी वृद्धि लिखी जिसको तो न्यायांभोनिधिजी ( अज्ञ जनोंको केवल भ्रमानेका ) ठहराते हैं और फिर आप भी शुद्ध समाचारीके मुजब उसी तरह से पौष और आषाढमासकी वृद्धि इस जगह मंजूर करते हैं यह न्यायांभोनिधिजीके अपूर्व विद्वत्ताका नमुना है क्योंकि दूसरेकी बातका खण्डन करना और उसी बातको आप मंजूर भी करलेना ऐसा अन्याय करना आत्मार्थियोंको उचित नही हैं और क्षामणाके सम्बन्धमें लिखा है सो भी जैनशास्त्रोंके तात्पर्य्यको समझे बिना प्रत्यक्ष मिथ्या लिखके भोले जीवोंको संशयमें गेरे हैं क्योंकि जब जिस संवत्सर में अवश्य करके तेरह मास और छवीश पक्ष होगये तथा धर्मकर्म और संसारिक सावध कार्य्य तेरह मासके For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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