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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ १६४ ] श्रीन्यायांभोनिधिजी निषेध करते हैं सो निःकेवल शास्त्र विरुद्ध उत्सत्र भाषण करके भोले जीवोंको कदाग्रहका रस्ता दिखाया हैं। ___ आगे छठा और भी सुनिये शुद्धसमाचारी कारके सत्य वाक्यको निषेध करनेके लिये अपना पक्षपातके जोरसें श्रीआत्मारामजीने ( तुमने अपने गच्छका मनन दिखाके अपनेही गच्छका प्रमाण पाठ दिखाया है यह तो ऐसा हुवा कि किसी लड़केनें कहा कि मेरी माता सती है साक्षी कौन कि मेरा भाई इसवास्ते यह आपका लेख प्रमाणिक नही हो सकता है) यह वाक्य लिखे हैं इसकी पांच तरहसें तो समीक्षा उपरमें होगई है और भी छठी तरहसे अब सुनाता हुं, कि-उपरोक्त लेखमें श्रीआत्मारामजीने शुद्ध समाचारीकारका उपहास करनेके लिये विद्वत्ताके अभिमानसे एक लड़केका दृष्टान्त दिखाया है परन्तु शुद्ध समाचारी कारके पूर्वाचार्य श्रीजिनपतिमूरिजी, श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंकी आज्ञानुसार शास्त्रोंकी मर्यादा पूर्वक सत्य वाक्य लिखा हैं इसलिये लड़केका दृष्टान्त शुद्ध समाचारी कारके उपर किञ्चिन्मात्र भी नही घट सकता है तथापि श्रीआत्मारामजीने लिखा है सो निःकेवल वर्त्तमानिक गच्छके पक्षपातसें श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंकी अवज्ञा कारक है, और जैसे ग्रीष्म ऋतुमें मध्याहूका समयके सूर्यको किसीने पत्थर फेंका तो भी सूर्य पर न गिरते पीछा लोट कर फेंकने वालेके शिर परही के गिर सकता है तैसेही श्रीआत्मारामजीका न्याय हुवा अर श्रीआत्मारामजीने लड़केका दृष्टान्त शुद्ध समाचारीकार पर दिया था परन्तु For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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