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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir । १६२ ] विजयजीके उपरोक्त लेखसे पक्षपात रहित विचारो किजिस पुरुषका वचन शास्त्र और युक्ति सहित होवे उसको सोनेके समान जानके सज्जन पुरुषोंको ग्रहण करना ही उचित है, और शास्त्र तथा युक्ति रहित वचनको हठवादसे ग्रहण करना सो निर्बुद्धि पुरुषोंका लक्षण है ऐसा दोनोंका कहना है तो इस पर मेरेको वड़ेही खेदके साथ लिखना पड़ता है कि श्रीआत्मारामजी न्यायांभोनिधि नाम धारण करते न्याय और बुद्धिके समुद्र होते भी श्रीजिनेश्वर भगवान् की आज्ञामुजब शास्त्रानुसार युक्ति करके सहित और सत्यवचन शुद्ध समाचारी कारने श्रीजिनपतिसूरिजी महाराजका लिखा था सो ग्रहण करने योग्य था तथापि उनको गच्च के पक्षपातसें वृथा क्यों निषेध किया होगा क्योंकि श्रीजिनपतिसूरिजीका (श्रावण और भाद्रव मास अधिक होवे तो भी पचासदिने पर्युषणा करना परन्तु ८० में दिन नही करना इतने पर भी ८० दिने पर्युषणा करते है सो शास्त्रविरुद्ध है) यह वाक्य श्रीशुद्धसमाचारी ग्रन्थका और श्रीसंघपटक वृहद्वत्तिका लिखा है सो शास्त्रानुसार सत्य है इसी ही बातका खुलासा इन्ही पुस्तकमें अनेक जगह ठामठाम शास्त्रोंके प्रमाण सहित युक्तिपूर्वक विस्तारसैं छप गया है इसलिये उपरकी बातका निषेध करनाही नही बनता है शुद्ध समाचारीकारने श्रीजिनपतिसूरिजी महाराज कृत ग्रन्थानुसार ५० दिने पर्युषणा ठहराई और ८० दिन करने वालोंको जिनाज्ञाके बाधक कहे है इसको श्रीआत्मारामजीने अप्रमाण व्हाया तब इसका तात्पर्य यह निकला कि ५० दिने पर्युषणा करनेवालोंकों दूषित ठहराये और ८० दिने पर्युषणा For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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